ये लफड़ों, ये झगड़ों, ये झड़पों का भारत
ये इनसां के दुश्मन समाजों का भारत
ये मज़हब के झूठे रिवाज़ों का भारत
ये भारत अगर मिट भी जाए तो क्या है
हर एक जिस्म पागल, हर एक रुह प्यासी
विज्ञापन पे खटपट, ट्वीटर पे लड़ाई
ये भारत है या आलम-ए-बदहवासी
यहाँ एक खिलौना है बिटिया की हस्ती
ये बस्ती है मुर्दा-परस्तों की बस्ती
यहाँ पर तो जीवन से है मौत सस्ती
जवानी भटकती है बेरोज़गार बनकर
जवां जिस्म मिटते है लाचार बनकर
यहाँ स्कूल खुलते हैं व्यापार बनकर
ये भारत जहां इंसानियत नहीं है
क़ानून नहीं है, हिफ़ाज़त नहीं है
जहां सच सुनने की आदत नहीं है
ये भारत अगर मिट भी जाए तो क्या है
(साहिर से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 15 अक्टूबर 2020 । सिएटल