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Thursday, October 15, 2020

ये लफड़ों, ये झगड़ों, ये झड़पों का भारत

ये लफड़ों, ये झगड़ों, ये झड़पों का भारत 

ये इनसां के दुश्मन समाजों का भारत 

ये मज़हब के झूठे रिवाज़ों का भारत 

ये भारत अगर मिट भी जाए तो क्या है


हर एक जिस्म पागल, हर एक रुह प्यासी

विज्ञापन पे खटपट, ट्वीटर पे लड़ाई 

ये भारत है या आलम-ए-बदहवासी


यहाँ एक खिलौना है बिटिया की हस्ती

ये बस्ती है मुर्दा-परस्तों की बस्ती

यहाँ पर तो जीवन से है मौत सस्ती


जवानी भटकती है बेरोज़गार बनकर

जवां जिस्म मिटते है लाचार बनकर

यहाँ स्कूल खुलते हैं व्यापार बनकर


ये भारत जहां इंसानियत नहीं है

क़ानून नहीं है, हिफ़ाज़त नहीं है

जहां सच सुनने की आदत नहीं है 


ये भारत अगर मिट भी जाए तो क्या है


(साहिर से क्षमायाचना सहित)

राहुल उपाध्याय । 15 अक्टूबर 2020 । सिएटल 


Thursday, August 27, 2020

मैंने काम और कमाई की तमन्ना की थी

मैंने काम और कमाई की तमन्ना की थी

मुझको हाथों की सफ़ाई के सिवा कुछ न मिला


गया मंदिर, गया मस्जिद, कहीं राहत न मिली 

किए सजदे, रोए दुखड़े, कहीं चाहत न मिली 

रहे हाथ ख़ाली, भलाई की तमन्ना की थी


किसी साधु किसी बाबा का सहारा भी नहीं 

रास्ते में कोई मिला नाकारा भी नहीं  

मैंने कब तन्हाई की तमन्ना की थी


मेरी राहों से जुदा हो गई राहें सबकी

आज बदली नज़र आती हैं निगाहें सबकी 

मिले कसाई, रिहाई की तमन्ना की थी


कुछ भी माँगा तो बदलते हुए फ़रमान मिले

चैन चाहा तो उमड़ते हुए तूफ़ान मिले

मिला बस शोर, शहनाई की तमन्ना की थी


घर में हो क़ैद ज़माने के अंधेरे पाए

घर से बाहर जो निकला तो झमेले पाए

मैंने कब रोज़ लड़ाई की तमन्ना की थी


(साहिर से क्षमायाचना सहित)

राहुल उपाध्याय । 7 अगस्त 2020 । सिएटल

https://youtu.be/Irs2oxHbJSk 


Monday, July 27, 2020

हर एक मास्क फले

सुनने के लिए यहाँ क्लिक करें:

हर एक मास्क फले
महामारी भाग चले
फिर से हो जग में 
वैसी ही सुबहें 
वैसी ही शाम ढले

घरों से प्राणी
सड़कों पे निकले
होके वो मस्त चलें

मुरझाते बच्चे
हर्षाए फिर से
खेलें वो मिल के गले

दुनिया में सब की
अच्छी हो ज़िन्दगी 
कोई न ग़म में पलें

(साहिर से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 26 जुलाई 2020 । सिएटल

Sunday, July 26, 2020

जाने वो कैसे रोग थे जिनका

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http://tinyurl.com/CovidShayari


जाने वो कैसे रोग थे जिनका

जल्द उपचार मिला 

हमने तो जब टीका माँगा 

वादों का अम्बार मिला


काम से जब छुट्टी चाही तो

जॉब ही छूट गई

नेताओं के भाषण सुनें तो

आस ही टूट गई 

भटका दर-दर इधर-उधर 

बंद हर द्वार मिला


बिछड़ गया हर साथी कहकर

है दो दिन की बात

किसकी हिम्मत है जो थामे 

बीमारों का हाथ

हमको तो आईना तक 

देता फटकार मिला


इसको ही जीना कहते हैं तो 

यूँही जी लेंगे

उफ़ न करेंगे मास्क पहनेंगे 

हाथ धो लेंगे

जीवन से अब घबराना कैसा

जीवन सार मिला 


(साहिर से क्षमायाचना सहित)

राहुल उपाध्याय । 26 जुलाई 2020 । सिएटल 


Monday, July 20, 2020

अभी ही जाओ छोड़ कर

सुनने के लिए यहाँ क्लिक करें:

अभी ही जाओ छोड़ कर
कि हो रहा बुरा अभी

मार्च अप्रैल से आई हो
क़हर बन के छाई हो
मास्क भी लगा लिए
हाथ  भी   धो  लिए
सेनिटाईजर भी ले आए हैं
मगर न काम आए हैं
मैं थोड़ी देर जी तो लूँ, 
निडर हो के जी तो लूँ 
अभी तो कहीं गया नहीं
अभी कोई आया नहीं 

करोड़ों तिलमिला उठे 
करोड़ों छटपटा उठे
बस अब न मुझको टोकना
न मुझे तुम्हें है रोकना 
अगर जो अब गई नहीं
लुट जाएँगे यहाँ सभी
कुछ दफ़्न हो जाएँगे
कुछ ख़ाक हो जाएँगे 
लो जाओ तुम इसी घड़ी
बढ़ाओ और न बेबसी 

असाध्य रोग डाल के
बड़े-बूढ़ों को मार के
जो रोज़ यूँही आओगी
क़हर बन के छाओगी 
कि ज़िंदगी की राह में
जवाँ दिलों की चाह में
कई दबाव आएंगे
जो हम को आज़माएंगे
ठीक से सुनो मुझे
ये हू्क्म है इल्तिजा नहीं

अभी ही जाओ छोड़ कर
कि हो रहा बुरा अभी

(साहिर से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 19 जुलाई 2020 । सिएटल

Friday, July 3, 2020

दूर रहकर न करो काम

सुनने के लिए यहाँ क्लिक करें:

दूर रहकर न करो काम
घर आ जाओ
हो रहे हो क्यूँ तुम उदास
घर आ जाओ

एक मुद्दत से तमन्ना थी
तुमसे मिलने की
पकड़ो महाराजा जहाज़ 
घर आ जाओ 

देश भक्तों की ज़माने में 
ज़रूरत भी है
आके कर दो अब सहयोग
घर आ जाओ 

दूर अमेरिका में रहने की
ज़रूरत क्या है
साथ रहें यहाँ माँ-बाप
घर आ जाओ

(साहिर से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 2 जुलाई 2020 । सिएटल

Tuesday, March 3, 2020

मेरे शहर आया एक नन्हा वायरस

मेरे शहर आया एक नन्हा वायरस
चीन से प्लेन पे हो के सवार

उसके हाथों में हैं हम सबके प्राण
उसके नाम से ही काँपे हम और आप
जब हटेगा, जब मिटेगा वो
तब जा के आएगी साँस में साँस 

उसके आने से मेरे जीवन में
उड़ गया चैन, छीन गया है क़रार 
हाथ धो कर भी जी नहीं भरता
चाहे धोऊँ उसे हज़ारों बार   

व्हाट्सैप पे मिले तो पूछूँ मैं
क्यूँ है ख़फ़ा, क्यूँ तू इतना ख़ूँख़ार?
क्या बिगाड़ा है हमने तेरा जो
कर रहा वार पे वार बेशुमार 

(साहिर से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 3 मार्च 2020 । सिएटल

Friday, April 20, 2018

वो हंगामा जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन

चलो इक बार फिर से क्रिकेट देख लें हम दोनों

मैं तुमसे कोई उम्मीद रखूँ फ़ैसले आदि की
तुम मेरी तरफ़ रखो माँग भागीदारी की
मेरे अपने जुनून हैं, मेरे सपने हैं
मेरे उपर लटकी है तलवार ज़िम्मेदारी की

तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेशकदमी से
मुझे भी लोग कहते हैं कि ये बेकार के चक्कर हैं
कब किस आंदोलन ने क्या बदल दिया देखो
शहीद हए कई लेकिन बदले न मंज़र हैं

तार्रुफ़ रोग हो जाये तो उसको भूलना बेहतर
ताल्लुक बोझ बन जाये तो उसको तोड़ना अच्छा
वो हंगामा जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन
उसे एक क्रिकेट मैच पर छोड़ना अच्छा

(साहिर से क्षमायाचना सहित)
20 अप्रैल 2018
सिएटल

Tuesday, November 11, 2014

छू लेने दो मोदीजी के चरणों को

छू लेने दो मोदीजी के चरणों को
कुछ और नहीं भगवान हैं ये
भाजपा के ही नहीं ये नेता हैं
पूरे भारत की शान हैं ये

ख़बरों को पढ़ के न भ्रमित होना
इनमें कहीं कोई खोट नहीं
इन जैसा नहीं कोई दानी है
कर देते सब कुछ दान हैं ये

अच्छों को बुरा साबित करना
राहुल की पुरानी आदत है
इसकी कविता में कोई दम नहीं
कहते बड़े-बड़े विद्वान हैं ये

(साहिर से क्षमायाचना सहित)
11 नवम्बर 2014
सिएटल । 513-341-6798

Sunday, November 9, 2014

छू लेने दो मोदीजी को झाड़ू

छू लेने दो मोदीजी को झाड़ू
कुछ और नहीं हैं नाटककार  हैं ये
इन महाशय को हमने चुना है
चूना लगाने के हक़दार हैं ये

गुंडों को नेता बनाना
वोटर की पुरानी आदत है
मोदीजी को भी न संत समझ
माना कि नहीं गुनहगार हैं ये

मत पा के हुए ये मतवाले
मस्ती का नज़ारा तुम देखो
भेड़ और बकरी की टोली है
कहते जिसे सरकार हैं ये

(साहिर से क्षमायाचना सहित)
9 नवम्बर 2014
सिएटल । 513-341-6798

Tuesday, October 29, 2013

रैली में बम कैसे फट गया?

दुनिया करे सवाल तो हम क्या जवाब दें?
मुश्किल हो अर्ज़-ए-हाल तो हम क्या जवाब दें?

पूछे कोई कि रैली में बम कैसे फट गया?
लाखों की भीड़ में कोई कैसे घुस गया?
कहने से हो बवाल तो हम क्या जवाब दें?

किस-किस का किस्सा-ए-खोट आप सुनाएंगे?
देखेंगे आईना तो दोष खुद में पाएंगे
नीयत ही हो छिनाल तो हम क्या जवाब दें?

वोटों को बीनने का समां फिर से बंध गया
आरोपों-प्रत्यारोपों का युद्ध फिर से छिड़ गया
धोती का हो रूमाल तो हम क्या जवाब दें?

(साहिर से क्षमायाचना सहित)
29 अक्टूबर 2013
सिएटल । 513-341-6798

Wednesday, April 17, 2013

तुम अगर मुझको न 'लाईक' करो तो कोई बात नहीं

तुम अगर मुझको न 'लाईक' करो तो कोई बात नहीं
तुम किसी और को 'लाईक' करोगी तो मुश्किल होगी

अब अगर ई-मेल नहीं है तो बुराई भी नहीं
न कहा 'हाय' तो कहा 'बाई' भी नहीं
ये सहारा भी बहुत है मेरे जीने के लिये
न बना 'फ़्रेंड' तो बना भाई भी नहीं
तुम अगर मुझको न 'फ़्रेंड' बनाओ तो कोई बात नहीं
तुम किसी और को 'फ़्रेंड' बनाओगी तो मुश्किल होगी

तुम हसीं हो, तुम्हें सब प्यार ही करते होंगे
मैं जो लिखता हूँ तो क्या और भी लिखते होंगे
सब की शायरी में इसी शौक़ का तूफ़ां होगा
सब की कविताओं में यही दर्द उभरते होंगे
मेरी कविताओं पे 'कमेंट'  न दो तो कोई बात नहीं
किसी और को 'कमेंट' दोगी तो मुश्किल होगी

फूल की तरह हँसो, सब की निगाहों में रहो
अपनी मासूम जवानी की पनाहों में रहो
मुझको वो फोटो न दिखाना तुम्हें अपनी ही क़सम
मैं तरसता रहूँ तुम गैर की बाहों में रहो
तुम अगर मुझसे न निभाओ तो कोई बात नहीं
किसी दुश्मन से निभाओगी तो मुश्किल होगी

(साहिर से क्षमायाचना सहित)
17 अप्रैल 2013
सिएटल । 513-341-6798

Friday, August 5, 2011

कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है

कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है
कि जैसे stock market गिराया गया है मेरे लिए
तू अबसे पहले हज़ारों में बिक रही थी कहीं
तूझे cheaper बनाया गया है मेरे लिए
कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है

कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है
कि ये crash, ये correction मेरी किस्मत है
ये collapsing prices हैं मेरी खातिर
ये volatality और ये uncertainty मेरी किस्मत है
कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है

कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है
कि जैसे तू split होती रहेंगी उम्र भर यूंही
बढ़ेगी तेरी earnings per share यूंही
मैं जानता हूं कि तू dot-com है मगर यूंही
कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है

कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है
कि जैसे मिल गया IPO कौड़ियों में कहीं
दो trades में ही मालामाल हो गया हूँ मैं
सिमट रही है तमाम दौलत मेरे खाते में
कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है

(साहिर से क्षमायाचना सहित)

Saturday, June 19, 2010

देखा है एन-आर-आई को कुछ इतना करीब से

देखा है एन-आर-आई को कुछ इतना करीब से
कोसों दूर चले आए हैं वो अपनी ज़मीन से


करने को करते बात हैं देश प्रेम की
लेकिन बनवा रहे हैं पासपोर्ट इक रकीब से


नीलाम हो रहे थे गुण हल्दी-ओ-नीम के
उंगली तक न उठाई गई इनके वकील से


कहने को फ़्लैट-कार है, लेकिन उधार सभी
लाखों की है कमाई मगर रहते गरीब से


इनकी वफ़ा की आपको क्या मैं मिसाल दूँ
देश, धर्म और साथ ये बदलें कमीज़ से


पितृ-दिवस मना रहे हैं बच्चों के साथ ये
पिता स्वयं के हैं कहीं बैठे मरीज़ से


सिएटल | 425-898-9325
19 जून 2010
(साहिर से क्षमायाचना सहित)

Thursday, February 26, 2009

ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी

ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी वो पुरूस्कार की रात
उनके निर्णय पे निर्भर हमारी औकात की रात

हाय वो रेशमी कालीन पे फ़ुदकना उनका
रटे-रटाए हुए तोतों सा चहकना उनका
कभी देखी न सुनी ऐसी टपकती लार की रात

हाय वो स्टेज़ पे जाकर के गाना जय हो
एक भी शब्द जिसका न समझ आया जज को
फिर उसी गीत को कहते हुए शाहकार की रात

जो न समझे हैं न समझेंगे 'दीवार' की माँ को कभी
जो न सुनते हैं न सुनेंगे
गुलज़ार के गीतों को कभी
उन्हीं लोगों के हाथों से लेते हुए ईनाम की रात

अभी तक तो करते थे सिर्फ़ बातें ही अंग्रेज़ी में वो
आज के बाद बनाने भी लगेंगे फ़िल्में अंग्रेज़ी में वो
गैर के सराहते ही मिटते हुए स्वाभिमान की रात


क्या किया
पीर ने ऐसा कि धर्म तक छोड़ा उसने?
क्या दिया धन ने हमें ऐसा कि देश भी छोड़ा हमने?
दिल में तूफ़ान उठाते हुए जज़बात की रात

सिएटल 425-445-0827
26 फ़रवरी 2009
(
साहिर से क्षमायाचना सहित)
====================
शाहकार = कला संबंधी कोई बहुत बड़ी कृति

Tuesday, September 23, 2008

कभी तो लिखो ख़त मुझे

कभी तो लिखो ख़त मुझे
कि मैं अभी मरा नहीं

अभी तो हुई लड़ाई है
बात कहाँ हो पाई है
दो चार लाईन लिख तो दो
बुरा भला कह तो दो
भड़ास दिल की निकाल लो
जी भर के मुझको कोस लो
नहीं तो कहोगी तुम सदा
कि मैंने कुछ कहा नहीं
नहीं नहीं नहीं नहीं
कभी तो लिखो ख़त मुझे
कि मैं अभी मरा नहीं

आँखें डबडबा रही
चाल डगमगा रही
ये दिल तुम्हें है सोचता
हर जगह है खोजता
जो तुम न मिल सकी अगर
तो कैसे कटेगी उमर
लाख मनाऊँ दिल को मैं
मगर दिल सम्हलता नहीं
नहीं नहीं नहीं नहीं
कभी तो लिखो ख़त मुझे
कि मैं अभी मरा नहीं

अधूरी बात छोड़ कर
मुझसे मुख मोड़ कर
जब से तुम रूठ गए
ख़्वाब सारे टूट गए
न जाने कैसे दिन ढले
कब और कैसे सांस चले
मैं सुध-बुध खो चुका
मुझे तो कुछ पता नहीं
नहीं नहीं नहीं नहीं
कभी तो लिखो ख़त मुझे
कि मैं अभी मरा नहीं

सिएटल,
23 सितम्बर 2008
(साहिर से क्षमायाचना सहित)

Tuesday, September 16, 2008

आपने कभी एन-आर-आई देखा है?

देखा है एन-आर-आई को कुछ इतना समीप से
धन-सम्पदा है लाख मगर लगते गरीब से

धन से है कितना मोह ज़रा देख लीजिए
तेल बेचने लगे हैं अपने घर के प्रदीप से

सोचा था लौट आएंगे वापस वो एक दिन
अभी तक भटक रहे हैं किसी बदनसीब से

मणि मिले तो चाट ले चमड़ी गोरों की
चाहे पड़े रहे परिजन लाचार निर्जीव से

स्वार्थ और लोभ की ये ज़िन्दा मिसाल हैं
समाज से कटे-कटे रहते हैं द्वीप से

इनकी वफ़ा की लाश को आओ विदा करें
दे कर के पासपोर्ट जो मिला है रकीब से

होता न राहुल एन-आर-आई तो होता क्या भला
एन-आर-आई न टंगे दिखते यूँ इक सलीब से

सिएटल,
16 सितम्बर 2008
(साहिर से क्षमायाचना सहित)
==========================
मिसाल = उदाहरण
रकीब = दुश्मन
सलीब = सूली

Wednesday, January 23, 2008

कभी कभी मेरे दिल में


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है
कि जैसे interest rate गिराया गया है मेरे लिए
तू अबसे पहले हज़ारों में बिक रही थी कहीं
तूझे cheaper बनाया गया है मेरे लिए
कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है

कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है
कि ये crash, ये correction मेरी किस्मत है
ये collapsing prices हैं मेरी खातिर
ये volatality और ये uncertainty मेरी किस्मत है
कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है

कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है
कि जैसे तू 'डिविडेंड' देती रहेंगी उम्र भर यूंही
बड़ेगी तेरी 'शेयर प्राईस' यूंही
मैं जानता हूं कि तू 'शेयर' है मगर यूंही
कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है (3)

कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है
कि जैसे मिल गया IPO कौड़ियों में कहीं
दो trades में ही मालामाल हो गया हूं मैं
सिमट रही है तमाम दौलत मेरे खाते में
कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है

दिल्ली
24 जनवरी 2008
(साहिर से क्षमायाचना सहित)

अमरीका के लिए #3 कुछ इस तरह है:

कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है
कि जैसे तू split होती रहेंगी उम्र भर यूंही
बड़ेगी तेरी earnings per share यूंही
मैं जानता हूं कि तू dot-com है मगर यूंही
कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है