मैं आरगेनिक नहीं हूँ
मुझे फ़र्टिलाईज़र और पेस्टिसाईड दे कर
बड़ा किया गया है
रात रात जाग कर
फिज़िक्स की प्राँब्लम्स
और गणित के समीकरण
हल किए हैं मैंने
अंग्रेज़ी के कई कठिन शब्द
याद किए हैं मैंने
देखो तो सही
अभी 10 साल का हुआ नहीं है
और इसे 100 तक के सारे
प्राईम नम्बर्स
स्क्वेयर रूट्स
और क्यूब रूट्स
मुँह जबानी याद है
मैं इसे
बोर्नविटा पिलाती हूँ
मेधावटी खिलाती हूँ
रोज सुबह 10 बादाम का
हलवा खिलाती हूँ
देखना एक दिन जरूर आई-आई-टी जाएगा
और विदेश जा कर अपना घर बसाएगा
मैं ज़िंदगी के पहले 20-22 वर्ष
इसी तरह गुज़ार देता हूँ
फ़्लैट की चार-दीवारी में
होस्टल के गलियारों में
टेबल-लैम्प की रोशनी में
पंखों के शोर में
ज़िंदगी का मतलब हो जाता है
कोचिंग
कम्पीटिशन
और पैसा कमाना
शरीर बड़ा हो जाता है
लेकिन दिमाग में
आंकड़ें,
फ़ार्मूलें,
रेस्निक-हेलिडे के हल
घर कर जाते हैं
त्योहार, रस्में, रीत-रिवाज़
सारे के सारे
दरकिनार हो जाते हैं
होली एक हुड़दंग
दीवाली पटाखों का शोर
और पूजा-पाठ एक आडम्बर
बन कर रह जाते हैं
मैं धीरे-धीरे
अलग हो जाता हूँ
अपने परिवार से
अपने समाज से
अपनी संस्कृति से
बड़ा हो जाने पर
मुझे धो-पोछ कर
सजा-धजा कर रख दिया जाता है
वो आते हैं
और मुझे ले कर चले जाते हैं
आज पार्टी है घर में
थोड़ा सलाद के लिए
खीरे-टमाटर-मूली-गाजर भी ले चले
और हाँ उस डाट-नेट प्रोजेक्ट के लिए
ये तीन ठीक रहेंगे
ताजा भी है
दाम भी कम है
जैसे क्रेडिट कार्ड से कोई
सब्जी खरीदता है
वैसे ही ग्रीन कार्ड दे कर
मुझे साथ ले कर चले जाते हैं
और देखते ही देखते
मैं धनाड्यों की फ़्रिज़ की
शोभा बढ़ाने लग जाता हूँ
और उस नियंत्रित वातावरण में
खुद को
सुरक्षित
और भाग्यशाली
समझने लगता हूँ
न आंधी का डर
न तूफ़ां का खौफ़
न चिलचिलाती धूप
न भिनभिनाते मच्छरों का डर
मैं आरगेनिक नहीं हूँ
आरगेनिक होता
तो कब का मिट्टी में मिल गया होता
फ़र्टिलाईज़र और पेस्टिसाईड्स के कारण
फ़्रिज के नियंत्रित वातावरण के कारण
एक लम्बी दासता का बोझ है मुझ पर
यही है दास्तां मेरी
कि
मैं आरगेनिक नहीं हूँ
सिएटल,
9 मई 2008
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आरगेनिक = Organic, developing in a manner analogous to the natural growth and evolution characteristic of living organisms; arising as a natural outgrowth.
फ़र्टिलाईज़र = fertilizer
पेस्टिसाईड = pesticide
फिज़िक्स = physics
प्राँब्लम्स = problems
समीकरण = equations
प्राईम नम्बर्स = prime numbers
स्क्वेयर रूट्स = square roots
क्यूब रूट्स = cube roots
बोर्नविटा = Bournvita
आंकड़ें = data
दरकिनार = sidelined
सजा-धजा = decorate
डाट-नेट = .Net
क्रेडिट कार्ड = credit card
ग्रीन कार्ड = green card
धनाड्य = wealthy
फ़्रिज = fridge, refrigerator
दासता = slavery
दास्तां = tale, story, saga
Friday, May 9, 2008
मैं आरगेनिक नहीं हूँ
Posted by Rahul Upadhyaya at 4:40 PM
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Labels: 24 वर्ष का लेखा-जोखा, Anatomy of an NRI, bio, intense, nri, TG
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6 comments:
अत्यंत ही भावपूर्ण रचना. इंतिहा. हद से ऊपर गुजरती हुई चीजों को बयान करती हुई....
bahut maarmik rachnaa hai.
aaj kaa daur baazaar kaa yug hai. pratyek vastu kaa baazaar hai, uskee keemat hai aur uskaa kretaa hai. yah baazaar-vadi soch hamaare bheetar gahree jaden jamaa chuki hai. baazaar jab tak maanav ke niyantran men thaa tab tak maanav ne aur maanveey moolyon ne unnati ki aur jab se baazaar maanav ke oopar haavee huaa hai tab se maanav kaa aur maanav moolyon kaa awmoolyan huaa hai. jise ham sabhytaa aur vikaas aur aab\dhuniktaa kah kar aatm mugdh hau\in wo darasal hamaaree vivashtaa hai jise hamne khud hee paidaa kiyaa hai.
baazaar-vadi soch kee saghantaa is had tak samaaj ko dushprabhaavit kar chuki hai ki ab ham apne bachchon men bhi marketing ki, vipaNan kee sambhaavnaayen dekhne lage hain lagbhag vaise hi jaise ek kasaai apne bakre yaa murge men sambhaavit maans kaa aaklan kar ke khush hotaa hai aur uski aankhon men chamak aa jaatee hai.
ye rachnaa sochne aur samajhne ke liye vivash karegi bashart-e padhne waale men samvedan-sheeltaa bachi ho
baazaarwaad par mere ek vyaakhyaan ke sampaadit ansh www.rachnaakaar.blogspot.com par padhe jaa sakte hain jo disambar men prakaashit huye the.
ek samarth rachnaa ke liye aapko badhaai.
anandkrishan, jabalpur
mobile:- 09425800818
बहुत मार्मिक रचना है.
आज का दौर बाज़ार का युग है. प्रत्येक वस्तु का बाज़ार है, उसकी कीमत है और उसका क्रेता है. यह बाज़ार-वादि सोच हमारे भीतर गहरी जड़ें जमा चुकी है. बाज़ार जब तक मानव के नियंत्रण में था तब तक मानव ने और मानवीय मूल्यों ने उन्नति की और जब से बाज़ार मानव के ऊपर हावी हुआ है तब से मानव का और मानव मूल्यों का अवमूल्यन हुआ है. जिसे हम सभ्यता और विकास और आधुनिकता कह कर आत्म मुग्ध हैं वो दर-असल हमारी विवशता है जिसे हमने खुद ही पैदा किया है.
बाज़ार-वदि सोच की सघनता इस हद तक समाज को दुश्प्रभावित कर चुकी है कि अब हम अपने बच्चों में भि मार्केटिंग की, विपणन की सम्भावनायें देखने लगे हैं. लगभग वैसे ही जैसे एक कसाई अपने बकरे या मुर्गे में सम्भावित मांस का आकलन कर के खुश होता है और उसकि आँखों में चमक आ जाती है.
ये रचना सोचने और समझने के लिये विवश करेगी बशर्त-ए पढ़ने वाले में सम्वेदन-शीलता बची हो
बाज़ारवाद पर मेरे एक व्याख्यान के सम्पादित अंश www.rachnaakaar.blogspot.com पर पढ़े जा सकते हैं जो दिसम्बर में प्रकाशित हुए थे.
एक समर्थ रचना के लिये आपको बधाई.
आनन्द कृष्ण, जबलपुर
mobile :09425800818
Bhai saheb, Bahut badiya. Bourvita and Medhavati ka use ultimate hai. Medha vati ko glossary main specify bhi kar dijiye.
Last time nahin aa paya, but is baar pakka aaounga.
Apka
Prashant
जैसे आप हमारी दास्तां कह रहे हों..बहुत सटीक. हम सब की यही कहानी है. आभार इतनी उम्दा रचना प्रस्तुत करने का.
Bahut hi sateek rachna hain... Dhanyawad.
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