जैसा देस वैसा भेस, ये सुना था सोच समझ कर ही देश चुना था वैसा ही पाया संसार जैसा ख्वाबों ने बुना था खुशियों का समंदर बढ़ा दिन दूना और रात चौगुना था जबसे आया मिलैनियम ये तब से हमें मिले नियम ये जिसका डंडा उसका झंडा यही है इस युग का फ़ंडा न जाने किसके गले पड़ेगा फ़ंदा जो भी मांगे उसे दे दो चंदा चाहे बाज़ार हो कितना भी मंदा और न मिले कोई काम धंधा सब हैं मस्त अपनी धुन में नहीं कोई अपना सच्चा साथी सब करते हैं अपना उल्लू सीधा चाहे हो वो गधा या हाथी क्या करेगा कोई बंदा जब लीडर ही हो एक अंधा नहीं पूरे होते अंधे के सपने वो होते हैं अनदेखे सपने बात मेरी मान लो बस इतना जान लो जब तक जी चाहे परदेस में रहो पर जब तक रहो परदे में रहो ओ परदेसी परदे सीना ध्यान से खतरा है स्वाभिमान से निकले न कहीं म्यान से झलके न कहीं ज्ञान से परदे की आड़ में हो सकता है बच जाओ इस मेल्टिंग पाँट में तुम भी पक जाओ सेन फ़्रांसिस्को 20 सितम्बर 2001
Monday, May 12, 2008
जिसका डंडा उसका झंडा
Posted by Rahul Upadhyaya at 12:33 PM
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Labels: intense, news, TG, Why do I write?
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