Wednesday, May 21, 2008

कवियों की दुनिया

कवियों की दुनिया में गोते लगा रहा हूँ मैं
दोस्त तो नहीं लेकिन दुश्मन बना रहा हूँ मैं

चुटकला नहीं है कविता कि जल्दी समझ गए
कैसे कहूं कि किसलिए ताली नहीं बजा रहा हूँ मैं

सिर्फ़ नाम पढ़ कर सर झुका लेते हैं सब
सच जानते हैं वो भी बस बता रहा हूँ मैं

यूँ तो अपने मन की रचना लिख लेता था मैं
आज का माहौल देख कर सकपका रहा हूँ मैं

मिल गया नोबेल पुरस्कार तो सब विरोधी बनेगे
यह सोच कर शुभचिंतको से कतरा रहा हूँ मैं


सिएटल,
21 मई 2008

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2 comments:

योगेन्द्र मौदगिल said...

achha hai. Likhte rahiye-kahte rahiye.. badhai

Anonymous said...

Bikul sahi kaha aapne, Rahul. Jaante to sach sabhi hain par aap sabke dil ki baat ko kavita mein bahut sundar tarah bayan kar dete ho. Yeh talent aur gift aap ko mila hai.