कवियों की दुनिया में गोते लगा रहा हूँ मैं
दोस्त तो नहीं लेकिन दुश्मन बना रहा हूँ मैं
चुटकला नहीं है कविता कि जल्दी समझ गए
कैसे कहूं कि किसलिए ताली नहीं बजा रहा हूँ मैं
सिर्फ़ नाम पढ़ कर सर झुका लेते हैं सब
सच जानते हैं वो भी बस बता रहा हूँ मैं
यूँ तो अपने मन की रचना लिख लेता था मैं
आज का माहौल देख कर सकपका रहा हूँ मैं
मिल गया नोबेल पुरस्कार तो सब विरोधी बनेगे
यह सोच कर शुभचिंतको से कतरा रहा हूँ मैं
सिएटल,
21 मई 2008
Wednesday, May 21, 2008
कवियों की दुनिया
Posted by Rahul Upadhyaya at 4:24 PM
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Labels: world of poetry
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2 comments:
achha hai. Likhte rahiye-kahte rahiye.. badhai
Bikul sahi kaha aapne, Rahul. Jaante to sach sabhi hain par aap sabke dil ki baat ko kavita mein bahut sundar tarah bayan kar dete ho. Yeh talent aur gift aap ko mila hai.
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