सच कहते कहते कविता बुरी हो गई
सच लिखते लिखते कलम छुरी हो गई
चुटकला समझ कर ठहाका लगाते थे जो
मेरी कविता से आज उनकी दूरी हो गई
हमेशा की तरह बस बेला था मैंने
तप कर आग में वो तंदूरी हो गई
आप ही खामखाह लहूलुहान हो गए
मेरे हिसाब से तो शाम सिंदूरी हो गई
फ़क़त शौक था राहुल का कविताएँ लिखना
ज़िंदा रहने के लिए आज वो जरूरी हो गई
सिएटल,
28 मई 2008
Wednesday, May 28, 2008
कविता बुरी हो गई
Posted by Rahul Upadhyaya at 4:27 PM
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Labels: Why do I write?, world of poetry
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