क्यों लिखता हूँ हर एक रात मैं
क्यों लिखता हूँ हर एक बात पे
क्यों लिखता हूँ इतना
क्यों भेजता हूँ इतना
क्यों नहीं थोड़ा रुक कर
दो चार बार जरा सोच कर
शिल्प इस पर मढ़ कर
रूप इसका गढ़ कर
फिर कहीं जा कर
क्यों नहीं भेजता हूँ मैं?
चार दिन की है उमर
वो दिन भी हैं उधार से
सफ़र करता हूँ प्लेन से
आँफ़िस जाता हूँ कार से
कभी भी कहीं भी कुछ भी हो सकता है
आप वंचित न रह जाए मेरे विचार से
इसीलिए
लिखता हूँ हर एक रात मैं
लिखता हूँ हर एक बात पे
मेरे अंदर का तेल जल रहा है
मेरे दीप की बाती भभक रही है
दीप जितने हो सके जला लू आज
आग जितनी हो सके लगा दू आज
कल का कोई भरोसा नहीं
न तुम रहो
न मैं रहू
लेकिन यह कतई मंजूर नहीं
कि दुनिया वैसी की वैसी रहे
दीप जितने हो सके जला लू आज
आग जितनी हो सके लगा दू आज
इसीलिए
लिखता हूँ हर एक रात मैं
लिखता हूँ हर एक बात पे
सिएटल,
18 मई 2008
Sunday, May 18, 2008
मैं क्यों लिखता हूँ?
Posted by Rahul Upadhyaya at 1:20 AM
आपका क्या कहना है??
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Labels: 24 वर्ष का लेखा-जोखा, bio, Why do I write?, world of poetry
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2 comments:
लिखते रहिये।
क्यों लिखता हूँ हर एक रात मैं
क्यों लिखता हूँ हर एक बात पे
जरुर लिखते रहिये
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