आजकल सोता कम और ज्यादा जागता हूँ मैं
यह सच नहीं है कि सपनों से दूर भागता हूँ मैं
कभी इधर तो कभी उधर
कभी यहाँ तो कभी वहाँ
दिन भर तो सपनों के आगे पीछे भागता हूँ मैं
यह सच नहीं है कि सपनों से दूर भागता हूँ मैं
अपनों को अपना बनाना है मुझे
कुछ बन के उन्हें दिखाना है मुझे
उठते बैठते दिन रात यही राग अलापता हूँ मैं
यह सच नहीं है कि सपनों से दूर भागता हूँ मैं
ये धुन बसी मेरे मन में जब से
दूर हो गया मैं अपनों से तब से
बस अब अपनों को अपने पास चाहता हूँ मैं
यह सच नहीं है कि सपनों से दूर भागता हूँ मैं
वो मुझ में हैं जिसने मुझे बनाया है
पर हाथ में अब तक नहीं आया है
हज़ार बार लाश की तरह खुद को तलाशता हूँ मैं
यह सच नहीं है कि सपनों से दूर भागता हूँ मैं
सिएटल,
14 फ़रवरी 2008
Thursday, May 15, 2008
आजकल
Posted by Rahul Upadhyaya at 2:15 PM
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Labels: 24 वर्ष का लेखा-जोखा, bio, intense
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