तूफ़ान आया
आ कर बरस गया
पानी में डूबा शहर
पानी को तरस गया
उफ़ान नदी का
उतर गया
आँखों में
समंदर ठहर गया
इस में भी उसका हाथ होगा
कुछ लेन-देन का हिसाब होगा
समझाते हैं अपने आप को
ढूंढते हैं अपने पाप को
तूफ़ान हो या कोई क़हर हो
खतरे का कोई पहर हो
कोंसते हैं अपने आप को
सहते हैं हर अभिशाप कि
कब मुक्ति हो इस पापी की
कब दया हो सर्वव्यापी की
सेन फ़्रान्सिस्को
सितम्बर 2005
(हरिकेन कटरिना के बाद)
Monday, May 12, 2008
कुदरत का खेल या ईश्वर का प्रकोप?
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