मैं अपनी माँ से दूर अमेरिका में रहता हूँ
बहुत खुश हूँ यहाँ मैं उससे कहता हूँ
हर हफ़्ते
मैं उसका हाल पूछता हूँ
और अपना हाल सुनाता हूँ
सुनो माँ,
कुछ दिन पहले
हम ग्राँड केन्यन गए थे
कुछ दिन बाद
हम विक्टोरिया-वेन्कूवर जाएगें
दिसम्बर में हम केन्कून गए थे
और जून में माउंट रेनियर जाने का विचार है
देखो न माँ,
ये कितना बड़ा देश है
और यहाँ देखने को कितना कुछ है
चाहे दूर हो या पास
गाड़ी उठाई और पहुँच गए
फोन घुमाया
कम्प्यूटर का बटन दबाया
और प्लेन का टिकट, होटल आदि
सब मिनटों में तैयार है
तुम आओगी न माँ
तो मैं तुम्हे भी सब दिखलाऊँगा
लेकिन
यह सच नहीं बता पाता हूँ कि
20 मील की दूरी पर रहने वालो से
मैं तुम्हें नहीं मिला पाऊँगा
क्यूंकि कहने को तो हैं मेरे दोस्त
लेकिन मैं खुद उनसे कभी-कभार ही मिल पाता हूँ
माँ खुश है कि
मैं यहाँ मंदिर भी जाता हूँ
लेकिन
मैं यह सच कहने का साहस नहीं जुटा पाता हूँ
कि मैं वहाँ पूजा नहीं
सिर्फ़ पेट-पूजा ही कर पाता हूँ
बार बार उसे जताता हूँ कि
मेरे पास एक बड़ा घर है
यार्ड है
लाँन में हरी-हरी घास है
न चिंता है
न फ़िक्र है
हर चीज मेरे पास है
लेकिन
सच नहीं बता पाता हूँ कि
मुझे किसी न किसी कमी का
हर वक्त रहता अहसास है
न काम की है दिक्कत
न ट्रैफ़िक की है झिकझिक
लेकिन हर रात
एक नए कल की
आशंका से घिर जाता हूँ
आधी रात को नींद खुलने पर
घबरा के बैठ जाता हूँ
मैं लिखता हूँ कविताएँ
लोगो को सुनाता हूँ
लेकिन
मैं यह कविता
अपनी माँ को ही नहीं सुना पाता हूँ
लोग हँसते हैं
मैं रोता हूँ
मैं अपनी माँ से दूर अमेरिका में रहता हूँ
बहुत खुश हूँ यहाँ मैं उससे कहता हूँ
सिएटल,
7 मई 2008
बहुत खुश हूँ यहाँ मैं उससे कहता हूँ
हर हफ़्ते
मैं उसका हाल पूछता हूँ
और अपना हाल सुनाता हूँ
सुनो माँ,
कुछ दिन पहले
हम ग्राँड केन्यन गए थे
कुछ दिन बाद
हम विक्टोरिया-वेन्कूवर जाएगें
दिसम्बर में हम केन्कून गए थे
और जून में माउंट रेनियर जाने का विचार है
देखो न माँ,
ये कितना बड़ा देश है
और यहाँ देखने को कितना कुछ है
चाहे दूर हो या पास
गाड़ी उठाई और पहुँच गए
फोन घुमाया
कम्प्यूटर का बटन दबाया
और प्लेन का टिकट, होटल आदि
सब मिनटों में तैयार है
तुम आओगी न माँ
तो मैं तुम्हे भी सब दिखलाऊँगा
लेकिन
यह सच नहीं बता पाता हूँ कि
20 मील की दूरी पर रहने वालो से
मैं तुम्हें नहीं मिला पाऊँगा
क्यूंकि कहने को तो हैं मेरे दोस्त
लेकिन मैं खुद उनसे कभी-कभार ही मिल पाता हूँ
माँ खुश है कि
मैं यहाँ मंदिर भी जाता हूँ
लेकिन
मैं यह सच कहने का साहस नहीं जुटा पाता हूँ
कि मैं वहाँ पूजा नहीं
सिर्फ़ पेट-पूजा ही कर पाता हूँ
बार बार उसे जताता हूँ कि
मेरे पास एक बड़ा घर है
यार्ड है
लाँन में हरी-हरी घास है
न चिंता है
न फ़िक्र है
हर चीज मेरे पास है
लेकिन
सच नहीं बता पाता हूँ कि
मुझे किसी न किसी कमी का
हर वक्त रहता अहसास है
न काम की है दिक्कत
न ट्रैफ़िक की है झिकझिक
लेकिन हर रात
एक नए कल की
आशंका से घिर जाता हूँ
आधी रात को नींद खुलने पर
घबरा के बैठ जाता हूँ
मैं लिखता हूँ कविताएँ
लोगो को सुनाता हूँ
लेकिन
मैं यह कविता
अपनी माँ को ही नहीं सुना पाता हूँ
लोग हँसते हैं
मैं रोता हूँ
मैं अपनी माँ से दूर अमेरिका में रहता हूँ
बहुत खुश हूँ यहाँ मैं उससे कहता हूँ
सिएटल,
7 मई 2008
14 comments:
so very true
This is a decision everyone of us has taken. A simple tradeoff of $$ with warmth of motherland....
And now i cannot fix it and all i do is miss them :(
Bahut hi touching kavita hai, Rahul.
Fantastic poem!
Bahut achi kavita hai. Aap kafi pratibhashali kavi hai.
Rahul Ji
rula diya aapki kavita ne... aur kya kahu..
बिलकुल सच है, बहुत अच्छी कविता है|
Wow! Really nice and touching creation. Keep going.
आपकी कविता बहुत सुंदर है धन्यवाद
Great poem Rahul.
very touching...
bahut achchha likha hai.
aapki is kavitaa par apnee tippani dene ke pahle ek kahaani ke baare men baat karnaa chaahunga jo mujhe is kavitaa ko padhte huye anaayaas hee yaad aa gai. woh kahaanee hai SAMVADIYAA. ye kahaani ek bade ghar ki beti ki hai jiskaa vivah ek gareeb ghar men dhokhe se ho jaataa hai. roj roj ki pareshaaniyon se tang aa kar ek din wo samvadiyaa (gaavon men rahne waalaa ek samaj-vishesh kaa sadasy jinkaa peshaa sanvaadon ko ek sthaan se doosre sthaan tak poori gopaneeytaa ke sath pahunchaanaa hotaa hai) ko bulaatee hai jissse uske dwaaraa wo apne maayke apnee badhaali kee khabar pahunchaa sake. jab samvadiyaa aataa hai to wo use apni badhaali kaa samaachaar ro-ro kar sunaatee hai. samvadiyaa uske maayke jaa kar khabar detaa hai ki bitiyaa ji raj raani jaisi raaj kar rahi hain. bahut sukhi hai aadi aadi. idhar bahu rani bhi pachhtaatee hai ki usne apnee sasuraal kee durdashaa ki khabar bhej kar theek nahi kiyaa. jab samvadiyaa waapas aataa hai to wo ro-ro kar bataataa hai ki usne galat samaachaar diye.
ye kahaani asal men hamaare do vyaktitvon ke sangharsh kee gaathaa hai. aur aapkee kavitaa bhi isi sangharsh kaa kaavymay roopankar hai.ye ek bhaavuk kar dene waalee, saamarthy-poorn, achchhi v sashakt kavitaa hai. aapki ye kavitaa apne ateet men utarne kee .... yaa yun kahiye ki atteet kee kaayaa men punarpravesh kee yaatraa kathaa hai
par ek baat hai-
hum praayah un sanskaaro aur paramparaaon se bandh jaate hai jo hamen bachpan men hamare parivesh se hamen milte hain, lekin ye baat ek swasth vyakti kaa gun nahi. ye kavita bhavuk to kati hai kintu paristhitiyon kaa koi vikalp ya samaadhaan nahin sujhaati.
phir bhi kavita apne vishay, shilp, saundary, kathy aur saamarthy ke kaaran aakarshit kartee hai.
anandkrishan, jabalpur.
mobile : 09425800818
बस बहुत हुआ, अब रुलाएगा क्या ??
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