मेरे नाना
एक पेड़ के लिए
सारे मोहल्ले से लड़े थे
ये नहीं कटेगा
ये नहीं कटेगा
कहते कहते
अपनी जिद पर अड़े थे
नाना की वजह से
सड़क के विस्तार में
रोड़े आ पड़े थे
सड़क का विस्तार रुक गया था
परिवार का विस्तार हो रहा था
समय अपनी चाल चल रहा था
नाना चल बसे थे
बहूएं आ बसी थी
उनके पोते अपने पाँव पर तो खड़े थे
लेकिन जीवन के और भी तो दुखड़े थे
अपनी आज़ादी का परिचय देने के लिए
खुद को कमरों में कैद करना जरूरी है
अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए
नई नई दीवारें खड़ी करना जरूरी है
एक नहीं
सारे के सारे पेड़ काट दिए गए
ताकि फिर न सर उठा सके
ज़मीन खोद खोद कर
जड़ से ही मिटा दिए गए
मैं साल दो साल में
जब भी वहाँ जाता हूँ
परिवार को हरा-भरा पाता हूँ
लेकिन उस पेड़ को
याद से नहीं मिटा पाता हूँ
मेरे घर में
एक नहीं कई पेड़ हैं
बेडरुम की खिड़की से
देखता हूँ उन्हें
जैसे वो किसी पेंटिंग का हिस्सा हो
मैं उनसे कभी जुड़ नहीं पाता हूँ
सिएटल,
22 मई 2008
Thursday, May 22, 2008
मेरे नाना
Posted by Rahul Upadhyaya at 5:24 PM
आपका क्या कहना है??
2 पाठकों ने टिप्पणी देने के लिए यहां क्लिक किया है। आप भी टिप्पणी दें।
Labels: 24 वर्ष का लेखा-जोखा, bio, digital age, intense, nature, relationship, TG
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
Bahut hi dil ko chhoone wali kavita hai, Rahul. Samay sach mein apni chaal chalta hai aur hum sub sirf dekh sakte hain aur mehsoos kar sakte hain. Bahut hi sundar kavita likhi hai appne apne dil ki baat kehne ke liye.
Rahul Ji,
Aap achhi kavita likh lete hain, maine kuch or search karte hue aap ko search kar daala. Vaise maine kavitae school days main he padhi hai but aapki kavita ek baar padhi to phir padhta he gaya. Mere Nana kavita ke following lines dil ko choo lete hain
अपनी आज़ादी का परिचय देने के लिए
खुद को कमरों में कैद करना जरूरी है
अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए
नई नई दीवारें खड़ी करना जरूरी है
मेरे घर में
एक नहीं कई पेड़ हैं
बेडरुम की खिड़की से
देखता हूँ उन्हें
जैसे वो किसी पेंटिंग का हिस्सा हो
मैं उनसे कभी जुड़ नहीं पाता हूँ
Post a Comment