Wednesday, May 28, 2008

जवानी

ये बंगला भी ले लो
ये गाड़ी भी ले लो
भले छीन लो मुझसे सारी सौगातें
मगर मुझको लौटा दो
जवानी की मस्ती
वो ढाबे की रोटी
वो होस्टल की रातें

वो मंदिर जाना और आँखें लड़ाना
आँखें लड़ा कर किसी को पटाना
पटाते पटाते सब कुछ लुटाना
वापस आ कर वो लम्बी सुनाना
भुलाए नहीं भूल सकता है कोई,
हसीं मुलाकातों की वो लम्बी सी बातें
ये बंगला भी ले लो …

होस्टल के बरामदे में कुर्सी लगाना
कुर्सी लगा कर मुर्गों को मुर्गा बनाना
वार्डन आ जाए तो उसे उल्लू बनाना
सपना सा लगता है वो बेखौफ़ ज़माना
न नौकरी का डर था न बीवी का बंधन
वो अपने थे दिन वो अपनी थी रातें
ये बंगला भी ले लो …

दो रुपये के पोस्टर से कमरा सजाना
मटकों के स्पीकर्स से बहता तराना
बिन कहानी की फ़िल्मों को फिर फिर लगाना
थोड़े से रुपयों में दुनिया का आनंद उठाना
और आज कम पड़ जाते हैं
बैंक में मिलियन्स के खातें
ये बंगला भी ले लो …

(सुदर्शन फ़ाकीर से क्षमायाचना सहित)
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सौगातें = gifts
बेखौफ़ = fearless
स्पीकर्स = speakers
मिलियन्स = millions
खातें = accounts

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