Tuesday, February 26, 2019

यदि दो भाईयों में

यदि दो भाईयों में 
कहा-सुनी हो जाए
और किसी का किसी पर
हाथ उठ जाए
तो दु: होता है
56 इंच का सीना नहीं दिखाया जाता है

आज
गांधी जी होते तो
अनशन कर रहे होते
गोडसे बंदूक ढूँढ रहे होते
यदि हत्या हो जाती
तो देश में जश्न होता
बच जाते तो उन्हें 
पाकिस्तान जाने को कहा जाता

सच
वक़्त कितना बेरहम है
सब भुला देता है
सब कुछ बदल देता है
और बदल कर सब कुछ फिर वैसा ही हो जाता है

सच तो यह भी है कि
हर नीति
हर परिस्थिति में लागू नहीं होती
तो फिर क्या करूँ 
उन सूक्तियाँ का
उन सद्विचारों का
उन शहद में लिपटी
पुष्पों से सुसज्जित पंक्तियों का
जिन्हें तुम सुबह-शाम मुझे भेजते हो
जिनमें कहा जाता है कि
आँख के बदले आँख 
सबको अंधा कर देती है
और वसुधैव कुटुम्बकम्

या तो उन पर अमल करो
या फिर बिना भेजा इस्तेमाल किए
उन्हें इधर से उधर भेजना बंद करो

26 फ़रवरी 2019 | सिएटल

Monday, February 25, 2019

पहले मोहल्ले में

पहले मोहल्ले में
  • लक्ष्मीनारायण जी मारसाब
  • धूलचन्द तेली
  • कारू सुतार
  • गब्बा दा चक्की वाले
  • धबई जी प्रेस वाले
  • डोशी जी दवाई वाले
रहते थे

और पेड़
  • आम के
  • नीम के
  • पीपल के
  • जामुन के
होते थे

अब
किसी को किसी के काम की 
कोई जानकारी नहीं है
और ही कोई सरोकार है
सब बस्ता लटकाए
भेड़-बकरियों की तरह
बस में भरकर जाते हैं
बस में भरकर आते हैं

अब मोहल्ले में
  • त्रिवेदी जी
  • गुप्ता जी
  • व्यास जी
  • पाराशर जी
  • लोढ़ा जी 
रहते हैं

पेड़ या तो रहे नहीं
या जो रह गए हैं
वे किसी किसी के खाते में गए हैं

लाल गाड़ी
अक्सर गुप्ता जी के पेड़ के नीचे खड़ी रहती है
ठेले वाला
व्यास जी के पेड़ के नीचे सब्जी बेचता है

अब पेड़
  • गुप्ता जी के
  • व्यास जी के
हैं

पहले पेड़
  • आम के
  • नीम के
  • पीपल के
  • जामुन के
होते थे ...

25 फ़रवरी 2019
सिएटल

Thursday, February 21, 2019

जिसे हटा देते हैं हम रास्ते से

जिसे हटा देते हैं हम रास्ते से
वह हटकर भी नहीं हटता 
डटा रहता है जमकर
चिढ़ाता है सरेआम
कोर से
छोर से
जिधर देखो उस ओर से

और तो और
राह निर्बाध होने के बजाय
और उलझ जाती है
पहले कार नहीं चल पाती थी
अब आप नहीं चल पाते हैं

बर्फ़, कार, सड़कें
सब उपमाएँ हैं

सच तो यही है कि
जिन्हें हटा देते हैं हम रास्ते से
वे हटकर भी नहीं हटते
और
जिन्हें हटाया नहीं 
वे ख़ुद--ख़ुद उड़न छू हो जाते हैं

21 फ़रवरी 2019
सिएटल

Thursday, February 14, 2019

तुम मिलोगी यह सोचकर

तुम मिलोगी यह सोचकर
कुछ लम्हें 
तह लगाकर रखे हैं
ताकि सिलसिलेवार तुम्हें सब सुना सकूँ 
कि कैसे छायागीत पर अपना गीत बजा
चाँद थमा
रात रूकी
आसमाँ झुका
महफ़िल जमी
और एक कविता बही ...

उस कविता के शब्द
तो मैं दुनिया को सुपुर्द कर चुका हूँ
लेकिन उनके सही मायने
तुम ही समझोगी
एक ही साँस में 
जब मैं पढ़ूँगा 
और तुम सुनोगी
हर बिन्दु
हर बिन्दी
हर नुक़्ता 
हर द्विअर्थी शब्द
जो कहा वह भी
जो नहीं कहा वह भी
सब समझ जाओगी

क्या तुम अब भी यही सोचती हो
कि हम
एक दूजे के लिए
नहीं है?

तुम मिलोगी यह सोचकर ...

14 फ़रवरी 2019
सिएटल