Wednesday, March 31, 2010

21 वीं सदी


डूबते को तिनका नहीं लाईफ़-गार्ड चाहिए
ग्रेजुएट को नौकरी ही नहीं ग्रीन-कार्ड चाहिए

खुशीयाँ मिलती थी कभी शाबाशी से
हर किसी को अब मॉनेट्री रिवार्ड चाहिए

जो करते थे दावा हमारी हिफ़ाज़त का
उन्हे अपनी ही हिफ़ाज़त के लिये बॉडी-गार्ड' चाहिए

घर बसाना इतना आसान नहीं इन दिनों
कलेजा पत्थर का और हाथ में क्रेडिट-कार्ड चाहिए

फ़ेसबुक, ट्वीटर और ब्लाग के ज़माने में
भुला दिये गये हैं वो जिन्हे सिर्फ़ पोस्ट-कार्ड चाहिए

सिएटल । 425-445-0827
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लाईफ़-गार्ड lifeguard; ग्रेजुएट = graduate;
ग्रीनकार्ड = green card; मॉनेट्री रिवार्ड = monetary reward;
बॉडी-गार्ड = bodyguard; क्रेडिट-कार्ड = credit card;
फ़ेसबुक = facebook; ट्वीटर = twitter;
ब्लाग = blog; पोस्ट-कार्ड = post card;

Friday, March 26, 2010

बिल तो है बिल

बिल तो है बिल
बिल का विश्वास, क्या कीजै
हो गया जो
जैसे तैसे पास, क्या कीजै

महीनों से सुनते आए,
पास जो बिल हो जाए
दुखड़े हमारे दिल के
दूर भगा ले जाए
बिल में है क्या-क्या कोई
मुझको बता ना पाए
जल्दी में है हर कोई
जल्दी में सब निपटाए
कुछ न कहे ये,
चुप ही रहे ये,
सब के सब हैरान
हड़बड़ी ने किया विनाश, क्या कीजै

बेकारी, बेरोज़गारी
बढ़ती है, बढ़ती जाए
घर से बेघर हो कर के
लाखों सड़क पे आए
दर्द मगर इन लोगों का
इनसे न देखा जाए
बिल कैसे पास होगा
चिंता यही थी हाए
कुछ न करे ये,
खुद में रहे ये,
जग से ये अनजान
हो गया हूँ मैं उदास, क्या कीजै…

सिएटल । 425-445-0827
26 मार्च 2010
(
अनजान से क्षमायाचना सहित)

Tuesday, March 23, 2010

रोशनी है इतनी कि आँख नहीं लगती है

सारा दिन गुज़र जाता है
और प्यास नहीं लगती है
देख के दुश्मन भी
तन में आग नहीं लगती है

ऐसा भी नहीं कि
मैं एक रोबोट हूँ यारो
कम्बख़्त रोशनी है इतनी
कि आँख नहीं लगती है

जीने के तो वैसे
कई तरीके हैं लेकिन
अपनी ही तबियत
कुछ खास नहीं लगती है

आएगा वो दिन
जब वो ढूंढेगी मुझको
महबूबा मेरी
जो मेरी आज नहीं लगती है

मिलूँगा कभी
तो पूछूँगा जहाँपनाह से
सल्तनत तुम्हारी
क्यों ज़िम्मेदार नहीं लगती है

सिएटल । 425-445-0827
23 मार्च 2010

Monday, March 22, 2010

जला है कोई और मैं आग लगाने लगा हूँ

जला है कोई और मैं आग लगाने लगा हूँ
मरा है कोई और मैं गीत सुनाने लगा हूँ

कवि हूँ कवि का धर्म निभाऊँगा ज़रूर
दुनिया के ग़म को भुनाने लगा हूँ

ऐसा नहीं कि पहले लड़ाई-झगड़े होते नहीं थे
अब हर रंजिश को जामा नया पहनाने लगा हूँ

ये कौम कौम नहीं, है दुश्मन हमारी
कह कह के भाईचारा बढ़ाने लगा हूँ

ख़ुद निकल आया हूँ मैं कोसों दूर वहाँ से
अब उनको ख़ुद्दारी से जीना सीखाने लगा हूँ

बात औरों की नहीं, कही अपनी है यारो
फिर न कहना कि आईना दिखाने लगा हूँ

सिएटल । 425-445-0827
22 मार्च 2010

Friday, March 19, 2010

पिता और देवता

कैसा है ये भारत प्यारे
कैसे इसके पुत्तर
जो पिता और देवता में
करे फ़र्क भयंकर
एक की मूर्ति बाहर रखे
एक की मूर्ति अंदर

कैसा है ये भारत प्यारे
कैसे भारतवासी
पिता-देवता रहे अलग
जबकि वे सहवासी
पिता-देवता दोनों देखो
दोनों स्वर्गवासी

कैसा है ये भारत प्यारे
कैसे इसके बंदे
जो गदाधारी-धनुषधारी
उनको करे सजदे
जो सूत काते, सत्य बोलें
उनसे रहे बच के

कैसा है ये भारत प्यारे
कैसी इसकी दुनिया
एक के सर पे दूध चढ़े
एक के सर पे चिड़िया
एक का लोग श्रृंगार करे
एक का बिगड़े हुलिया

कैसा है ये भारत प्यारे
कैसा ये कैरेक्टर
जीवन जिसने किया अर्पण
कहे वो दलिद्दर
देखा नहीं जिसे उसके
जपे रोज़ मंतर

सिएटल । 425-445-0827
19 मार्च 2010
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कैरेक्टर = character
दलिद्दर = बिलकुल गया-बीता और बहुत ही निम्न कोटि का। परम निकृष्ट

Wednesday, March 17, 2010

मनाओ नवरात्रि, मनाओ सेंट पेट्रिक्स डे

यहाँ और वहाँ में क्या है फ़र्क?
पेश हैं कुछ ताजा तर्क

वहाँ के लोग बनाए घर
यहाँ के बिल्डर्स बनाए हाऊस
वहाँ के बिल पाले चूहें
यहाँ के बिल बेचे 'माऊस'

वहाँ के लोग करे 'मिस्ड कॉल'
यहाँ के लोग करे 'मिस कॉल'

यहाँ का प्रेसिडेंट अभी तक 'मेल'
वहाँ की प्रेसिडेंट एक 'फ़िमेल'

यहाँ है 'जय हो', वहाँ है 'सेक्सी मामा'
वहाँ मायावती, यहाँ ओबामा

यहाँ है कान्फ़्लुएंस, वहाँ है संगम
यहाँ है मैडॉफ़, वहाँ है सत्यम

यहाँ है प्लेन, वहाँ है रेल
यहाँ है बर्गर, वहाँ है भेल

यहाँ है ब्लो-ड्राय, वहाँ है तेल
वहाँ है ठेला, यहाँ है 'सेल'

वहाँ है आंगन, यहाँ है यार्ड
वहाँ है रुपया, यहाँ है कार्ड

वहाँ का हीरो, यहाँ है 'कूल'
वहाँ की बंकस, यहाँ है 'बुल'

यहाँ है जीज़ज़, वहाँ है शंकर
यहाँ है सलाद, वहाँ है कंकर

यहाँ है दूध, वहाँ है पानी
यहाँ है 'बेब', वहाँ है 'जानी'

यहाँ है पिक-अप, वहाँ है खच्चर
यहाँ है ट्रेफ़िक, वहाँ है मच्छर

वहाँ है पैसा, यहाँ हैं सेन्ट्स
यहाँ है डॉलर, वहाँ हैं सैन्ट्स

यहाँ हैं 'मेन', वहाँ हैं 'जेन्ट्स'
वहाँ है साड़ी, यहाँ हैं पेन्ट्स

वहाँ हैं पंखे, यहाँ है हीटर
यहाँ है मील, वहाँ किलोमीटर

वहाँ है बाल्टी, यहाँ है शावर
वहाँ था शौहर, यहाँ है नौकर

वहाँ है भाई, यहाँ है 'मॉब'
यहाँ जी-पी-एस, वहाँ 'भाई साब!'

यहाँ है रेस्ट-रूम, वहाँ है खेत
यहाँ है बेसबॉल, वहाँ क्रिकेट

वहाँ है बोलिंग, यहाँ है पिचिंग
यहाँ है टैनिंग, वहाँ है ब्लीचिंग

यहाँ है ब्लांड, वहाँ है संता
वहाँ पटाखें, यहाँ है सांटा

वहाँ नमस्ते, यहाँ है हाय
यहाँ है पेप्सी, वहाँ है चाय

यहाँ का लेफ़्ट, वहाँ का राईट
वहाँ की लिफ़्ट, यहाँ की राईड

वहाँ का यार, यहाँ है डूड
वहाँ है सीमेंट, यहाँ है वुड

यहाँ है डायटिंग, वहाँ है घी
यहाँ है 'आहा', वहाँ है 'जी'

वहाँ का इंजीनियर, यहाँ है नर्ड
यहाँ का योगर्ट, वहाँ है कर्ड

यहाँ है डोनट, वहाँ श्रीखंड
वहाँ ठंडाई, यहाँ है ठंड

यहाँ वीकेंड, वहाँ है संडे
वहाँ है होली, यहाँ सेंट पेट्रिक्स डे

मनाओ होली, मनाओ सेंट पेट्रिक्स डे
मारो होम-रन, मारो छक्के
करो फ़्रीक-आउट, चक दो फट्टे

यहाँ और वहाँ में फ़र्क तो ढूंढ़ा
लेकिन हर फ़र्क में विनोद ही ढूंढ़ा

यहाँ है वन, वहाँ है वन,
जहाँ है वन, वहीं 'हैवन'

न कोई 'पास', न कोई 'फ़ेल'
जहाँ न अपना, वहीं है जेल
बनाएँ अपने, बड़ाया मेल
उठाए फोन, भेजी मेल

न कोई गलत, न कोई सही है
खट्टा लगा तो समझा दही है
जीवन जीने की रीत यहीं है
मैं जहाँ हूँ, स्वर्ग वहीं है

सिएटल 425-445-0827

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St. Patrick's Day = March 17, 2010

Tuesday, March 16, 2010

नव-वर्ष - 1 जनवरी को या चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को?


कहने लगे अग्रज मुझसे
तुम तो पूरे अंग्रेज़ हो
अपनी ही संस्कृति से
करते परहेज़ हो

1 जनवरी को ही
मना लेते हो नया साल
जबकि चैत्र मास में
बदलता है अपना साल

तुम जैसे लोगो की वजह से ही
आज है देश का बुरा हाल
तुम में से एक भी नहीं
जो रख सके अपनी धरोहर को सम्हाल

मैंने कहा
आप मुझसे बड़े हैं
मुझसे कहीं ज्यादा
लिखे पढ़े हैं

लेकिन अपनी गलतियाँ
मुझ पे न थोपिए
अपने दोष
मुझ में न खोजिए

हिंदू कैलेंडर आपको तब-तब आता है याद
जब जब मनाना होता है कोई तीज-त्योहार

जब जब मनाना होता है कोई तीज-त्योहार
आप फ़टाक से ठोंक देते हैं चाँद को सलाम

लेकिन स्वतंत्रता दिवस
क्यूँ मनाते हैं 15 अगस्त को आप?
और गणतंत्र दिवस भी
क्यूँ मनाते हैं 26 जनवरी को आप?

जब आप 2 अक्टूबर को
मना सकते हैं राष्ट्रपिता का जन्म
तो 1 जनवरी को क्यूँ नहीं
मना सकते नव-वर्ष हम?

पहले जाइए और खोजिए
इन सवालों के जवाब
फिर आइए और दीजिए
हमें भाषण जनाब

मेरी बात माने
तो एक काम करें
जिसको जब जो मनाना है
उसे मना ना करें
मना कर के
किसी का मन खट्टा ना करें

सिएटल । 425-445-0827

Monday, March 15, 2010

एक था पेड़

एक था पेड़
जो लहलहाता था आंगन में
अब जल रहा है
मेरे फ़ायर-प्लेस में

एक था पशु
जो विचरता था बाग में
अब पक रहा है
मेरे किचन में

एक थे पूर्वज
जिनकी अस्थियाँ
बन के जीवाश्म ईधन
जल रही हैं
मेरी कार में

ऊर्जा
न बनती है
न मिटती है
सूत्र यही सोच कर
करता हूँ मन शांत मैं

सिएटल । 425-445-0827
15 मार्च 2010
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फ़ायर-प्लेस = fire place
किचन = kitchen
जीवाश्म ईधन = fossil fuel

Friday, March 12, 2010

सपने दिखाई नहीं देते हैं

आँखें इतनी कमज़ोर हैं कि
सपने दिखाई नहीं देते हैं
आदमी तो आदमी
गधे दिखाई नहीं देते हैं

ईश्वर के साम्राज्य को
कुत्तों को कौन समझाए

कि जब तक न बरसात हो
कुकुरमुत्ते दिखाई नहीं देते हैं

कैसे हैं ये महानगर
कैसा इनका विकास है
कि बढ़ रही है आबादी
और बच्चे दिखाई नहीं देते हैं

जिन हसीनाओं ने पहना
नौ-लखा परफ़्यूम है
उन हसीनाओं के तन पे क्यूँ
कपड़े दिखाई नहीं देते हैं

जब भी होता है कोई हादसा
और भर आते हैं नैन
पड़ोसी होते पास नहीं
और अपने दिखाई नहीं देते हैं

मतलब के हैं दोस्त सभी
मतलब के हैं भक्त
मंदिर में न हो प्रसाद यदि
बंदे दिखाई नहीं देते हैं


सिएटल । 425-445-0827
12 मार्च 2010

Monday, March 8, 2010

क़हर

पहले भी बरसा था क़हर
अस्त-व्यस्त था सारा शहर
आज फ़िर बरसा है क़हर
अस्त-व्यस्त है सारा शहर

बदला किसी से लेने से
सज़ा किसी को देने से
मतलब नहीं निकलेगा
पत्थर नहीं पिघलेगा
जब तक है इधर और उधर
मेरा ज़हर तेरा ज़हर

बुरा है कौन, भला है कौन
सच की राह पर चला है कौन
मुक़म्मल नहीं है कोई भी
महफ़ूज़ नहीं है कोई भी
चाहे लगा हो नगर नगर
पहरा कड़ा आठों पहर

न कोई समझा है न समझेगा
व्यर्थ तर्क वितर्क में उलझेगा
झगड़ा नहीं एक दल का है
मसला नहीं आजकल का है
सदियां गई हैं गुज़र
हुई नहीं अभी तक सहर

नज़र जाती है जिधर
आँख जाती है सिहर
जो जितना ज्यादा शूर है
वो उतना ज्यादा क्रूर है
ताज है जिनके सर पर
ढाते हैं वो भी क़हर

आशा की किरण तब फूटेंगी
सदियों की नींद तब टूटेंगी
ताज़ा हवा फिर आएगी
दीवारे जब गिर जाएंगी
होगा जब घर एक घर
न तेरा घर न मेरा घर

सिएटल । 425-445-0827
8 मार्च 2010

Sunday, March 7, 2010

जब तुम आई थी


जब तुम आई थी
तब कुछ कोपलें उग आई थी
और वसंत का आगमन हुआ था

अब वो फूल बन गई हैं
और शूल सी चुभती है

तुम मेरे कितने पास थी
और मैं तुमसे कितना दूर!

***

कहा था कि
फिर मिलेंगे हम

लेकिन
जैसे मिले थे कल
क्या फिर मिलेंगे हम?

***

झूठ है कि जीवन क्षणभंगुर है!

तुम चंद पलों के लिए आई थी
और अब मैं
अनगिनत
लम्बी रातें
गुज़ार रहा हूँ
तुम्हारी खुशबू
तुम्हरा अहसास
और तुम्हारी हर साँस
ओढ़ कर

झूठ है कि जीवन क्षणभंगुर है!

सिएटल । 425-445-0827
7 मार्च 2010

Friday, March 5, 2010

स्वामी के दीवाने

हर तरफ़ अब यहीं अफ़साने हैं
सब किसी न किसी स्वामी के दीवाने हैं

इतनी बेवकूफ़ी भरी है इंसानों में
कि पढ़े-लिखे भी गधे हो जाए
स्वामीजी जो नज़र आ जाए चैनल पर
तो पांच बजे भी उठ के खड़े हो जाए
छोटे-बड़े सब लगते दुम हिलाने हैं
हर तरफ़ अब यहीं अफ़साने हैं
सब किसी न किसी स्वामी के दीवाने हैं

इक हल्का सा इशारा इनका
किसी भी रोगी को चंगा कर दे
इस तरह की आस के बदले में
जो जान और माल फ़िदा कर दे
ऐसे भक्त इन्हे और फ़ंसाने हैं
हर तरफ़ अब यहीं अफ़साने हैं
सब किसी न किसी स्वामी के दीवाने हैं

कभी लंदन तो कभी अमरीका
नहीं ढाका या फिर अफ़्रीका
सिर्फ़ रईसो को भक्त बनाते हैं
आलिशान होटलों में शिविर लगाते हैं
और दावा ये कि गीता के श्लोक समझाने हैं
हर तरफ़ अब यहीं अफ़साने हैं
सब किसी न किसी स्वामी के दीवाने हैं

(कैफ़ी आज़मी से क्षमायाचना सहित)

पहेली 33

नापता है पर तोलता नहीं
काटता है पर मारता नहीं

सीता है पर राम नहीं
महिलाओं का यह काम नहीं

यदि होती महिला तो होती दर्जन
इसके बिना न हम दिखते सज्जन

अब आप ही सुलझाओ मेरी उलझन
ये न हो तो न हो सुंदर जीवन

सिएटल । 425-445-0827
5 मार्च 2010

पहेली 32 का उत्तर

जूते

Tuesday, March 2, 2010

मंदिर

मैं जब भी कभी मंदिर जाता हूँ
भगवान को वैसे का वैसा ही तटस्थ पाता हूँ
कर्मयोगी जो ठहरे!

वही मुद्रा
वही भाव-भंगिमा
वही अधरो पे मुरली

और
साथ में वही राधा
जो कृष्ण को छोड़
मुझे देख रही हैं


जो कि
असम्भव
अकल्पित
और
असत्य है

इन्हीं सब बातों को ले कर
मैं हो जाता हूँ उनसे विमुख
न उन्हें देखकर मुझे मिलता है सुख
न उन्हें पर्दे के पीछे पा कर होता है दु:ख

इनका होना न होना
कोई मायने नहीं रखता है

अब मैं मंदिर के पार्किंग लॉट
में खड़ी कारें देख कर
खुश होता हूँ

मंदिर की वेब-साईट पर
कार्यक्रम की फ़ेहरिश्त देख कर
प्रोत्साहित होता हूँ

कि चलो आज बच्चों का भी मन लग जाएगा
कुछ नाचना-गाना होगा
कुछ गाना-बजाना होगा
कोई नाटक-शाटक होगा
शाम अच्छी बीत जाएगी

और
प्रीतिभोज में
अगर लड्डू, हलवा या खीर हुआ
तब तो चार चाँद ही लग जाएगे

बिखरे चप्पल
भटकते भक्त
और
बच्चों के कोलाहल में
मंदिर में एक जान आ जाती है
और मेरे चेहरे पर मुस्कान

वरना
पत्थर तो पत्थर ही ठहरा!

सिएटल । 425-445-0827
2 मार्च 2010

Monday, March 1, 2010

'हैप्पी होली' न हमसे बोली गई है

होली आई और होली गई है
लेकिन 'हैप्पी होली' न हमसे बोली गई है

भावनाओं की कद्र कौन करता है यारो
भाषा के पलड़े में भावना तोली गई है

हम ही सही है और तुम सब गलत हो
कह कह के हम पे दागी गोली गई है

हिंदी हो, उर्दू हो या भाषा हो कोई
इनके हिमायतियों की पोल कब खोली गई है

हमसे न पूछो क्यों हम निराश हैं इतने
चाहा जिसे उसकी उठा दी डोली गई है

सिएटल । 425-445-0827
1 मार्च 2010
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हैप्पी होली = Happy Holi