Sunday, October 30, 2022

बबल

इतनी बड़ी ट्रेजेडी हो गई 

और इसकी हमें ख़बर नहीं 

इसका हम पर असर नहीं 

इसका कोई ज़िक्र नहीं 

अर्ली हेलोवीन 

लेट दीवाली 

मनती रहीं

पतझड़ की बहार

मन हरती रही

गोष्ठी चलती रही 


क्या हम

निष्ठुर हैं

पत्थर हैं

कि कोई भी घटना

हमें विचलित नहीं कर सकती

जब तक वो हमारी अपनी न हो


इतनी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का 

क्या फ़ायदा 

जब वो हमें 

बबल की क़ैद से

आज़ाद नहीं कर सकती


राहुल उपाध्याय । 30 अक्टूबर 2022 । सिएटल 


इतवारी पहेली: 2022/10/30


इतवारी पहेली:


बार-बार कहती हो मैं कुछ ### ## 

लो, दो और एक तो है मेरी ## ## # 


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya



आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 


सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 6 नवम्बर 2022 को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 30 अक्टूबर 2022 । सिएटल 















Saturday, October 29, 2022

ये ट्वीटर है

ये ट्वीटर है 

इस ट्वीटर का 

यही है, यही है, यही है रंग रूप

थोड़ी न्यूज़ है 

थोड़ी बकवास 

यही है, यही है, यही है रंग रूप


ये न सोचो इसमें अपने पराग हैं कि मस्क हैं

उसे अपना लो जो भी मार्केट की रीत है 

ये ज़िद छोड़ो, मुँह न मोड़ो 

तुमसे ही ट्वीटर है


छलकेंगे नैन कभी अपने भी रात को

समझेंगे क्या तभी मतलब की बात को

ये जग सारा, कितना प्यारा 

खट्टा और स्वीटर है


(आनन्द बक्षी से क्षमायाचना सहित)

राहुल उपाध्याय । 29 अक्टूबर 2022 । सिएटल 


Friday, October 28, 2022

आपकी याद मुझको आती नहीं

आपकी याद मुझको आती नहीं 

भूल जाऊँ मैं कैसे पता ही नहीं 


ये करूँ, वो करूँ, सोचूँ मैं रात भर 

रात कटती नहीं, नींद आती नहीं 


फ़ोल्डर फ़ोटो से हैं तमाम भरे हुए 

शक्ल जिनकी मुझे आज भाती नहीं 


आग में हाथ दूँ, फ़ोन लगाऊँ उन्हें 

फ़र्क़ दोनों में मुझको मिला ही नहीं 


जान के बूझ के प्यार उनसे किया

जो सफ़र में रहे मेरे साथी नहीं 


राहुल उपाध्याय । 28 अक्टूबर 2022 । सिएटल 


बादशाही हुकूमत जाती रही

बादशाही हुकूमत जाती रही

आज संतों की दहशत है छाई हुई


आप क्या खाएँगे, आप पहनेंगे क्या

सारी बंदिशें हैं हम पे लगाई गई 


कल तलक आप देते थे आशीर्वचन 

आज हुंकार दिन भर सुनाई पड़ी 


प्यार के, प्रीत के वचन कहते नहीं 

आग घर में है इनकी लगाई हुई 


दाड़ी का, मूँछ का ओढ़ मुखौटा लिया

आँख सबसे न इनसे मिलाई गई 


कल चढ़ाते थे जिनको ये श्रद्धा सुमन

आज उनको ही गाली सुनाई गई 


राहुल उपाध्याय । 28 अक्टूबर 2022 । सिएटल 

Thursday, October 27, 2022

हक़ीक़त हमारी

हक़ीक़त हमारी कहानी हो गई 

दिल की थी साफ़ सयानी हो गई 


क़िस्से सुनाए कहानी बनाए

पलक झपकते नानी हो गई 


जान थी मेरी, बड़ी ख़ास थी वो 

आज वो चीज़ पुरानी हो गई 


क़ाफ़िया है एक जिसमें नाम भी है 

लगाऊँ कि नहीं परेशानी हो गई 


नम्बर भी है और फ़ोन भी साथ 

लगाऊँ कि नहीं परेशानी हो गई 


ना वो मीरा कोई न राधा कोई 

कि प्यार में टूट दीवानी हो गई 


बेवफ़ा कहूँ कि बेमुरव्वत कहूँ 

कि बन के मेरी बेगानी हो गई


थे अरमान कई, थे ख़्वाब कई

ज़िन्दगी आज बेमानी हो गई 


वाक़िफ़ था जिसकी रग-रग से राहुल वो आश्ना तो क्या अनजानी हो गई 


राहुल उपाध्याय । 27 अक्टूबर 2022 । सिएटल 




Tuesday, October 25, 2022

एम्बुलेंस चेज़र्स

जितने फ़ोटो 

पत्तों के झड़ने के लिए जाते हैं 

उतने उनके उगने के नहीं 


जितने फ़ोटो सूर्यास्त के लिए जाते हैं

उतने सूर्योदय के नहीं 


जितने लोग मौत पर आते हैं 

उतने जन्म पर नहीं 


हम सब एम्बुलेंस चेंजर्स हैं


राहुल उपाध्याय । 25 अक्टूबर 2022 । सिएटल 


Monday, October 24, 2022

ये दीवाली हमारी है कितनी भली

ये दीवाली हमारी है कितनी भली

लाई ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ हमारी गली 

ये नहीं आज की, आप की बात है 

ये तो हरती सदा ग़म सब के रही


कल जो हारे से मारे से दिखते थे वो

आज इक जीत का उनमें उल्लास है 

हो विराट-सुनाक-अनाम कोई 

सबके दिल में भरी आज इक आस है

हाँ दिया है दिया बहुत इसने हमें 

सच यही बात हमने सबसे कही


तुम जो चाहो कि कोई तुम्हें प्यार दे

इक दीपक तो लेकर चलो साथ में

चाँद आए न आए तुम्हें थामने

इक दीपक हरे तम सदा रात में

तम हो ग़म हो या हो कोई बला

लौ सदा दीप की राह दिखाती रही


हम यदि आज अपने मक़ामों पे हैं 

ये न सोचें कि हम अपने कामों से हैं 

हाँ दुआएँ जहां की है इनमें लगीं 

तब जा के कहीं हम निगाहों में हैं

आम हो, ख़ास हो या हो श्रेणी कोई 

बस समझो दुआओं से गाड़ी चली


राहुल उपाध्याय । 24 अक्टूबर 2022 । सिएटल 


Sunday, October 23, 2022

टेक्नॉलजी हो पर इतनी नहीं

टेक्नॉलजी हो पर इतनी नहीं 

कि अपनों में हो मेरी गिनती नहीं 


मिल रही है शुभकामनाएँ 

जबकि वे गई भेजी नहीं 


कॉपी/पेस्ट से है भेज रही

नाम भी मेरा लिखती नहीं 


कहती है झूठ कि हाँ उन्होंने पढ़ ली

जबकि सच तो हैं कि उन्होंने देखी नहीं 


रेवड़ियों सी जो ये बाँट रहीं 

दुआएँ तो ये लगती नहीं 


राहुल उपाध्याय । 23 अक्टूबर 2022 । सिएटल 





आड़े आ गए बीच में बस दो भाई थे

राम के वो था क़रीब 

और राम से था इतना वो दूर 

कि वाल्मीकि न तुलसी ने

न गुप्त ने न पंत ने

न सभा में किसी संत ने

नाम लिया उसका कभी


हाँ साथ था वो उन तीन के

जब ब्याह दिये गए थे वो थोक में


क्या चाह थी उसकी क्या माँग थी

क्या उसकी भी कोई राह थी?

कौन व्यर्थ कोई समय बर्बाद करे

क्यूँ उसकी कोई बात करे

जो न कोसता था न पूजता था

बस सूर्यवंश का उसमें खून था

उसके अलावा न उसमें कोई गुण था

न राम ने पूछा हाल कभी

न उसने राम से किया कोई प्रश्न कभी

कि कुछ सीख ले, कुछ जान ले

भेद सृष्टि के सृष्टा से जान ले

भाभी के पाँव पखार ले

आशीर्वाद उनसे माँग ले


वो पात्र था बस नाम का

उसका न कोई किरदार था

न चित्र उसका न पोस्टर कोई 

न दो गज की दूरी थी न दो हाथ की

आड़े आ गए बीच में बस दो भाई थे


नाम था जिसका शत्रुघ्न 

हाय कितना नीरस वो पात्र था


राहुल उपाध्याय । 23 अक्टूबर 2022 । सिएटल 




Saturday, October 22, 2022

इतवारी पहेली: 2022/10/23


इतवारी पहेली:


जीजाजी निकले इतने #### 

कि हम सब ने बहुत ## ##


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya



आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 


सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 30 अक्टूबर 2022 को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 23 अक्टूबर 2022 । सिएटल 















राजा और प्रजा

राजा और प्रजा में क्या अंतर है 

आज फिर उन्होंने दिखा दिया


जहाँ हमें दो सेकण्ड नहीं ठहरने दिया जाता है 

वहाँ ये घंटों गुज़ार देते हैं 

और तो और

दूर-दूर तक हम फटक नहीं पाते हैं 

इनका ही एकछत्र राज रहता है 


हाँ 

वीडियो ज़रूर भेज देते हैं 

जिसमें विग्रह नहीं दिखते 

बस ये ही फ़ुटेज खाते दिखते हैं 


न जाने क्या सुख मिलता है इन्हें 

भक्तों का सुख छीनने में 


राहुल उपाध्याय । 21 अक्टूबर 2022 । सिएटल 



Friday, October 21, 2022

दहलीज़ों पर हम दीप रखें

दहलीज़ों पर हम दीप रखें 

अंगना चमके दुख दूर हटे 

आँसू न हमारे आज बहें 

अंगना चमके दुख दूर हटे 


माना कि जहां में ग़म भी हैं

सुख और सहारे कम भी हैं

इक दीपक आस का आज जले

अंगना चमके दुख दूर हटे


होंठों पे तराने ले आएँ

उन्माद जीवन का घर लाएँ

नख से शिखा तक आज सजें

अंगना चमके दुख दूर हटे


राहुल उपाध्याय । 20 अक्टूबर 2022 । सिएटल 

http://mere--words.blogspot.com/2022/10/blog-post_21.html?m=1



दहलीज़ों पर हम दीप रखें

दहलीज़ों पर हम दीप रखें 

अंगना चमके दुख दूर हटे 

आँसू न हमारे आज बहें 

अंगना चमके दुख दूर हटे 


माना कि जहां में ग़म भी हैं

सुख और सहारे कम भी हैं

इक दीपक आस का आज जले

अंगना चमके दुख दूर हटे


होंठों पे तराने ले आएँ

उन्माद जीवन का घर लाएँ

नख से शिखा तक आज सजें

अंगना चमके दुख दूर हटे


राहुल उपाध्याय । 20 नवम्बर 2022 । सिएटल 


Wednesday, October 19, 2022

समाचार

इतिहास ही नहीं 

समाचार भी

देश, काल, परिस्थिति के हिसाब से

एक ही समय में कई रूप ले लेते हैं


इस चैनल पर कुछ 

उस चैनल पर कुछ 

और उस चैनल पर और कुछ 


इस अख़बार में कुछ 

उस अख़बार में कुछ 

और उस अख़बार में और कुछ 


इस देश में कुछ 

उस देश में कुछ 

और उस देश में और कुछ


यदि सच जानना है तो

विशेषण न पढ़ कर

सिर्फ़ संज्ञा-सर्वनाम-क्रिया ही पढ़ें 

और भविष्यगामी खबरें तो देखें ही न


ये अख़बार हैं

इनके पास कोई यंत्र नहीं 

जो कल की बात आज बता दें 

2024 का तो क-ख-ग भी नहीं पता


राहुल उपाध्याय । 20 अक्टूबर 2022 । सिएटल 

(मल्लिकार्जुन के निर्वाचन पर)




मिला थी जब तुम कल रात तो

मिली थी जब तुम कल रात तो

क्या आई थी याद उन रातों की?

जब तारों के नीचे हम साथ थे

झंझावात से नहीं जज़्बात थे

सहज, सरल, करते बात थे

न इधर का डर था

न उधर का भय

मिलने को रहते बेताब थे

ग़लत-शलत वो जो भी था

लगता नहीं हमें ग़लत वो था


कल तुम तप रही थी इतनी ज़ोर से

कि मैं भाँप रहा था इस छोर से

पास नहीं तुम आ रही थी 

दूर से ही तुम जा रही थी

सबको किया तो मुझे भी किया 

मेरे लिए कोई दुआ-सलाम न था

डम्ब शरेड में भी तुमने भाग लिया

मेरा क्लू न कोई सॉल्व किया 


इतना तो है कि तुम मुझे भूली नहीं 

भूल सकी नहीं कि भुलाना चाहा नहीं 

मालूम पड़े तो कुछ चैन पड़े


मिली थी जब तुम कल रात तो …


राहुल उपाध्याय । 19 अक्टूबर 2022 । सिएटल 







Monday, October 17, 2022

शर्ट

एक साल पहले

जो तुमने शर्ट प्रेस की थी

वो मैंने आज पहनी


इतने दिनों से 

मैं बस उसे देखता था

देखता था कि तुम उसे कैसे 

देख रही थी

पानी के छींटे मारकर 

उसकी सिलवटें मिटा रही थी

तुमने कभी शर्ट पर प्रेस नहीं की थी

मैंने ही तुम्हें गुर सिखाए थे

पहले कॉलर

फिर कंधे

फिर बाँहें 

फिर पीठ

बाद में जो बच गया वो सब कुछ 

तुम बहुत लालायित थी मेरे सारे काम करने को

मैं तो स्वावलंबी हूँ 

सारे काम अपने आप करना अच्छा लगता है 

और तुम हठ करती थी

कितने प्यार से खीरे-टमाटर काटती थी

अखरोट भी याद से भिगो देती थी

मेरी सारी सीमित ज़रूरतों का ध्यान रखती थी

जो अल्हड़ थी

किचन से दूर रहती थी 

जिसे काम न करने के दस बहाने आते थे

कैसे मेरे लिए सब कुछ करने को उतावली रहती थी


मैं देखता था उसे 

और देखता था तुम्हें 

मैं छूता था उसे

और छूता था तुम्हें 


तुम्हारे मोती से दांत 

ज़ुल्फ़ों के पेंच 

खनकती हँसी

सब कुछ, सब कुछ 

मेरे सामने होते थे


सोचता था

पहन लिया तो

तुमसे रिश्ता ख़त्म हो जाएगा 

फ़ोन तो बंद हो ही गए हैं 


शर्ट पहना तो लगा

तुम्हें ओढ़ लिया


शर्ट पर सिलवटें पड़ गईं 

अब वो वॉशर में है


बैसाखी हटा ली है 


राहुल उपाध्याय । 17 अक्टूबर 2022 । सिएटल 






Friday, October 14, 2022

6 अक्टूबर

6 अक्टूबर 

आकर चला गया

और मुझे तनिक भी 

पता न चला कि उस दिन 

मम्मी को गुज़रे 14 महीने हो गए थे


सब कुछ सामान्य हो गया है 

अति सामान्य 


नई गतिविधियों ने जन्म ले लिया हैं

ऐसा भी नहीं है 


जीवन पूर्ववत ही है

लेकिन अब उनके कमरे में जाने पर

धड़कन नहीं बढ़ती

भावुक नहीं होता

आँखें नम नहीं होतीं


कमरा वैसा ही है जैसा था

वही पलंग 

वही टीवी

वही रिमोट

वही साइड टेबल

कुछ भी नहीं बदला 

फिर भी ये मुझे विचलित नहीं करते

वैसे ही निष्प्राण थे

अब और पत्थर हो गए हैं 


कुछ तो हो

जो मुझे रूलाए (1)

उनकी याद दिलाए


तुलसी में पानी बिना नागा किए

रोज़ देता हूँ 

वे भी फल-फूल रही हैं 

मम्मी की ज़रूरत किसी को नहीं है 


मम्मी की किसी को पड़ी नहीं है 


राहुल उपाध्याय । 14 अक्टूबर 2022 । सिएटल


(1-जो किसी ने नहीं किया, इस कविता ने कर दिया)