Tuesday, October 11, 2022

जंजाल है ये दुनिया

जंजाल है ये दुनिया 

सुख-दुख न बराबर हैं

कहने को जीवन है

पर मरते यहाँ पर हैं


मिलता न कोई हमदम

सुनसान नज़ारे हैं

पनघट न बचा कोई 

मरघट ही हमारे हैं

हर साँस उम्मीदों के

बस मिटते आखर हैं


दो दिन की दुनिया में

संताप हज़ारों हैं

आगे न कोई पीछे 

पर पाप हज़ारों हैं 

करना भी जो कुछ चाहूँ 

डर रहते सदा सर हैं 


राहुल उपाध्याय । 11 अक्टूबर 2022 । सिएटल 




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