Monday, October 17, 2022

शर्ट

एक साल पहले

जो तुमने शर्ट प्रेस की थी

वो मैंने आज पहनी


इतने दिनों से 

मैं बस उसे देखता था

देखता था कि तुम उसे कैसे 

देख रही थी

पानी के छींटे मारकर 

उसकी सिलवटें मिटा रही थी

तुमने कभी शर्ट पर प्रेस नहीं की थी

मैंने ही तुम्हें गुर सिखाए थे

पहले कॉलर

फिर कंधे

फिर बाँहें 

फिर पीठ

बाद में जो बच गया वो सब कुछ 

तुम बहुत लालायित थी मेरे सारे काम करने को

मैं तो स्वावलंबी हूँ 

सारे काम अपने आप करना अच्छा लगता है 

और तुम हठ करती थी

कितने प्यार से खीरे-टमाटर काटती थी

अखरोट भी याद से भिगो देती थी

मेरी सारी सीमित ज़रूरतों का ध्यान रखती थी

जो अल्हड़ थी

किचन से दूर रहती थी 

जिसे काम न करने के दस बहाने आते थे

कैसे मेरे लिए सब कुछ करने को उतावली रहती थी


मैं देखता था उसे 

और देखता था तुम्हें 

मैं छूता था उसे

और छूता था तुम्हें 


तुम्हारे मोती से दांत 

ज़ुल्फ़ों के पेंच 

खनकती हँसी

सब कुछ, सब कुछ 

मेरे सामने होते थे


सोचता था

पहन लिया तो

तुमसे रिश्ता ख़त्म हो जाएगा 

फ़ोन तो बंद हो ही गए हैं 


शर्ट पहना तो लगा

तुम्हें ओढ़ लिया


शर्ट पर सिलवटें पड़ गईं 

अब वो वॉशर में है


बैसाखी हटा ली है 


राहुल उपाध्याय । 17 अक्टूबर 2022 । सिएटल 






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