Tuesday, November 16, 2010

तम ही है एक चिरस्थायी तत्व

तम ही है एक चिरस्थायी तत्व
बाकी सब क्षणभंगुर बस
तम से ही निकले, तम में समाना
फिर क्यूँ दीप का डंका बजाना?


तम जो न होता तो हम भी न होते
माँ की कोख में न अंकुरित होते
प्रकाश से होता प्रेम हमें तो
पहली भेंट में न जम कर रोते


तम ही सृष्टि का एक अनवरत सत्य
प्रकाश के मिलते हैं सिर्फ़ छुटपुट पुंज
तम न मिटा है न कभी मिटे
जहाँ भी जाओ वहाँ ये मिले


दीप जो जलता है तो जला करे
तम भला किसी से काहे लड़े?
वो तो आँधी की फ़ितरत है जो
दीप की लौ को डराती फिरे


सिएटल | 513-341-6798

16 नवम्बर 2010


Tuesday, November 9, 2010

मौसम


पतझड़ के पत्ते
जो जमीं पे गिरे हैं
चमकते दमकते
सुनहरे हैं

पत्ते जो पेड़ पर
अब भी लगे हैं
वो मेरे दोस्त,
सुन, हरे हैं

मौसम से सीखो
इसमें राज़ बड़ा है
जो जड़ से जुड़ा है
वो अब भी खड़ा है
रंग जिसने बदला
वो कूड़े में पड़ा है


घमंड से फूला
घना कोहरा
सोचता है देगा
सूरज को हरा


हो जाता है भस्म
मिट जाता है खुद
सूरज की गर्मी से
हार जाता है युद्ध

मौसम से सीखो
इसमें राज़ बड़ा है
घमंड से भरा
जिसका घड़ा है
कुदरत ने उसे
तमाचा जड़ा है

Friday, November 5, 2010

दीवाली - अपना, अपना रंग

It is just November 5th

Democrats lost
Independents won
Washington is counting
And you want me to do what?
Light up a lamp because
It is time to party?

Dismal weather
Increasing unemployment
Waning wages
All are signs that
Life is ugly and
It is just November 5th

Don’t worry
It will all be over
Well wishers say
Although they fully know that
Life is ugly and
It is just November 5th

Don’t you know
If wishes were horses
We will all be riders
And since it isn’t so
Let it go
It is just November 5th

Seattle,
November 5th , 2010

दीवाली की शुभकामनाएं

दीवाली की रात
हर घर आंगन
दिया जले

उसने जो
घर आंगन दिया
वो न जले
दिया जले
दिल न जले

यूंहीं ज़िन्दगानी चले
दीवाली की रात
सब से मिलो

चाहे बसे हो
दूर कई मीलों

शब्दों से उन्हे
आज सब दो
न जाने फिर
कब दो

दुआ दी
दुआ ली
यहीं है दीवाली

सेन फ़्रांसिस्को
अक्टूबर 2000



दीवाली की यादें

दीवाली मनाए
हो गया एक ज़माना
जीने का मतलब
जब से हो गया कमाना

न स्कूल हैं बंद
न हैं आँफ़िस में छुट्टी
किस्मत भी देखो
किस तरह है फ़ूटी
बाँस को भी था
आज ही सताना

दीवाली मनाए
हो गया एक ज़माना
जीने का मतलब
जब से हो गया कमाना

न वो पूजा का मंडप
न वो फूलों की खुशबू
न वो बड़ों का आशीष
न वो अपनो की गुफ़्तगू
समां फिर ऐसा
मिले तो बताना

दीवाली मनाए
हो गया एक ज़माना
जीने का मतलब
जब से हो गया कमाना

वो मिठाई के डब्बे
वो दस तरह के व्यंजन
न था डाँयबिटिज़ का डर
न थे डाँयटिंग के बंधन
वो खूब खिला के
अपनापन जताना

दीवाली मनाए
हो गया एक ज़माना
जीने का मतलब
जब से हो गया कमाना

वो गलियों में रंगत
वो दहलीज़ पे रंगोली
वो रंगीं पोषाकों में
बच्चों की टोली
सपना सा लगता है
अब वो ज़माना

दीवाली मनाए
हो गया एक ज़माना
जीने का मतलब
जब से हो गया कमाना

याद आता है
वो पटाखों का शोर
बारूद में महकी
वो जाड़ों की भोर
वो रात-रात भर
दीपक जलाना


दीवाली मनाए
हो गया एक ज़माना
जीने का मतलब
जब से हो गया कमाना

सिएटल
24 अक्टूबर 2005

एक और दीवाली



अब कहाँ की दीवाली
और कैसी दीवाली
आएगी और जाएगी
एक और दीवाली

होली का माहौल हो
या दीवाली का त्यौहार
मनाया जाता है
सिर्फ़ शनिवार रविवार
अब कहाँ की दीवाली
और कैसी दीवाली
आएगी और जाएगी
एक और दीवाली

एक ही तरह की
महफ़िल है सजती
निमंत्रण देने पर
घंटी है बजती

कर के वही
बे-सर-पैर की बातें
गुज़ारी जाती हैं
वो दो-चार रातें

अब कहाँ की दीवाली
और कैसी दीवाली
आएगी और जाएगी
एक और दीवाली

त्यौहार-दर-त्यौहार
वहीं लाल-पीले
कपड़े पहने हैं जाते
वहीं घीसे-पीटे जोक्स
सुनाए हैं जाते

वहीं छोले
वहीं मटर-पनीर
वहीं गुलाब जामुन
और वहीं खीर
अब कहाँ की दीवाली
और कैसी दीवाली
आएगी और जाएगी
एक और दीवाली

पैसे की होड़ में
आगे बड़ने की दौड़ में
पार की थी सरहदें
और पार कर गए कई हदें

दोस्तों से बंद हुआ
दुआ-सलाम
भूल गए करना
बड़ो को प्रणाम

धूल खा रहा है
पूजा का दीपक
रामायण के पोथे को
लग गई है दीमक

अब कहाँ की दीवाली
और कैसी दीवाली
आएगी और जाएगी
एक और दीवाली


महानगर की गोद में
ईमारतों की चकाचौंध में
हैं अपनों से दूर
हम सपनों के दास
न पूनम से मतलब
न अमावस का अहसास

अब कहाँ की दीवाली
और कैसी दीवाली
आएगी और जाएगी
एक और दीवाली

सिएटल
21 अक्टूबर 2006

Tuesday, November 2, 2010

परिणाम चाहे जो भी हो

डेमोक्रेट्स जीते या रिपब्लिकन्स जीते, हमें क्या

ये मुल्क नहीं मिल्कियत हमारी

हम इन्हें समझे हम इन्हें जाने

ये नहीं अहमियत हमारी


तलाश-ए-दौलत आए थे हम

आजमाने किस्मत आए थे हम

आते हैं खयाल हर एक दिन

जाएंगे अपने घर एक दिन

डेमोक्रेट्स जीते या रिपब्लिकन्स जीते

बदलेगी नहीं नीयत हमारी

हम इन्हें समझे ...


ना तो है हम डेमोक्रेट

और नहीं है हम रिपब्लिकन

बन भी गये अगर सिटीज़न

बन न पाएंगे अमेरिकन

डेमोक्रेट्स जीते या रिपब्लिकन्स जीते

छुपेगी नहीं असलियत हमारी

हम इन्हें समझे ...


न डेमोक्रेट्स का प्लान

न रिपब्लिकन्स का वाँर

कर सकता है

हमारा उद्धार

डेमोक्रेट्स जीते या रिपब्लिकन्स जीते

पूछेगा नहीं कोई खैरियत हमारी

हम इन्हें समझे ...


हम जो भी हैं

अपने श्रम से हैं

हम जहाँ भी हैं

अपने दम से हैं

डेमोक्रेट्स जीते या रिपब्लिकन्स जीते

काम आयेगी बस काबिलियत हमारी

हम इन्हें समझे ...



फूल तो है पर वो खुशबू नहीं

फल तो है पर वो स्वाद नहीं

हर तरह की आज़ादी है

फिर भी हम आबाद नहीं

डेमोक्रेट्स जीते या रिपब्लिकन्स जीते

यहाँ लगेगी नहीं तबियत हमारी

हम इन्हें समझे ...