Thursday, February 28, 2008

मन

आँखों को क्या चाहिए?
कुछ छींटें पानी के
दो कांटेक्ट लेंस
या एक शानदार चश्मा

चेहरे को क्या चाहिए?
एक मग पानी
और थोड़ा सा साबुन
जरा सी क्रीम
जरा सा लोशन

कान को क्या चाहिए?
मात्र दो तार
जो सुनाते रहे
संगीत लगातार

पांव को क्या चाहिए?
दो जोड़ी आरामदायक जूतें
एक दौड़ने के लिए
एक दफ़्तर के लिए

हाथ को चाहिए
एक घड़ी
उंगली को चाहिए
एक अंगूठी
गले को चाहिए
एक हार
बदन को चाहिए
कपड़े दो-चार

जीभ को चाहिए
थोड़ी सी चाट
थोड़ी सी मिठाई
और एक गरमागरम चाय

पेट को चाहिए
दो वक़्त का भोजन

शरीर की ज़रुरते हैं
बस इतनी ही
पर मन?
इसका पेट तो कभी भरता ही नहीं

इस मन, इस आत्मा का क्या करु?
इसे किस तरह से खुश करु?
इसे कैसे संतुष्ट करु?

ये शरीर तो नश्वर है
एक दिन मिट भी जाएगा
मगर आत्मा?
एक अच्छी-खासी मुसीबत है!
क्यूंकि ये तो कभी मरती भी नहीं!

सिएटल,
28 फ़रवरी 2008

Wednesday, February 27, 2008

आए-जाए


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

जब कभी आग लग जाए
और इंसान जल-जला जाए
तो वो हाय-हाय करता है

जब कभी बाढ़ आए
या जलजला आए
तो भी वो हाय-हाय करता है

जलजला आए
या जल-जला जाए
हर सूरत में इंसान हाय-हाय करता है

और अगर कोई न आए और न जाए
तो इंसान अकेलेपन से घबराता है

निष्कर्ष यहीं निकला कि
चाहे कुछ भी हो जाए
इंसान की फ़ितरत ही ऐसी है कि
वह हर सूरत में हाय-हाय करता है

सिएटल,
27 फ़रवरी 2008

Tuesday, February 26, 2008

तरक्की के Side-effects


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

जूतें उतरतें हैं
जेबें खाली होती हैं
ये सब पहले मंदिरों में होता था
आजकल एयरपोर्ट पर भी होता हैं

5 हज़ार मील की दूरी
इंसान 10 घंटे में तय कर लेता है
चाहे अंधियारी रात हो
या लगातार बरसात हो
पर पानी की बोतल से फिर भी डरता है

ज़हर तो हमेशा से मारता आया है इंसान को
पर आजकल वो चीनी खाने से भी डरता है

Friday, February 22, 2008

संस्कृति: विकास या विनाश?


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

नौकरी करते करते
बच्चे deliver करती है माँ
जैसे एक project deliver होता है
वैसे ही बच्चे भी deliver करती है माँ

उसकी भी एक due date होती है
इसकी भी एक due date होती है

सारा जिम्मा होता है अस्पताल पर
सारी रस्में रख दी जाती हैं ताक पर

जिस दिन घर आता है नवजात शिशु
न होता है जश्न, न बजता है ढोल,
न चढ़ती है प्रसाद, न बंटती है मिठाई
न होता है स्वागत, न घर आता है कोई देने बधाई
न होती है पूजा, न खुशी की लहर
बस चिंता रहती है चलेगा कैसे घर?

कहीं ज्यादा, तो कहीं कम, छुट्टी मिलती है नपी-नपाई
तुरंत लौट जाते हैं काम पर ताकि कटे एक भी न पाई

कभी घंटो में तो कभी हफ़्तों में
ज़िंदगी बिताते है हिस्सों में
8 घंटे बिस्तर, 8 घंटे दफ़्तर
बाकी भागदौड़ में इधर-उधर

ज़िंदगी हो गई जैसे कोई soap serial
सब कुछ है virtual, नहीं कुछ भी real

Discovery channel के जरिए
जैसे होती है बच्चों की हाथी से भेंट
वैसे ही Web-cam की बदौलत
होती है बच्चों की दादा-दादी से भेंट

Battery झूला झुलाती है
CD सुनाती हैं लोरियां
मां-बाप भटकते हैं सड़को पर
और TV सुनाता है कहानियां

जब कभी बचपन याद आएगा
तो बच्चे को क्या याद आएगा?
वो AA की battery, जिसने झूला झुलाया उसे?
वो चमचमाती CD, जिसने लोरी सुना सुलाया उसे?
या वो TV पर सुनी हुई Elmo या Barney की नसीहतें?
या वो video पर देखी हुई Tom and Jerry की शरारतें?

जहां नौकरी करते करते माँ deliver करती हैं बच्चे
वहां ईमान-धरम, मान-मर्यादा बचे भी तो कैसे बचे?

जहां दही जमाने के लिए भी नहीं culture मयस्सर
उस ज़माने में किसी को संस्कृति की हो क्यो फ़िकर?

जिस समाज में हर एक ज़रुरत की service है
वह समाज समाज नहीं महज एक दरविश है

आज यहां है तो कल वहां
घर पर नहीं कोई रहता यहां
हज़ारों मील दूर रहते हैं अपने
एक दूसरे से मिलने के पालते हैं सपने

घर से भागे दौलत के पीछे
भाषा त्यागी संगत के डर से
कपड़े बदले मौसम के डर से
आभूषण उतारे चोरी के डर से
ग्रंथ छोड़े कट्टरता के डर से
दीप बंद हुए आग के डर से
शंख-घंटीया बंद हुई पड़ोसी के डर से
भोजन पकाना छोड़ा बदबू के डर से
रस्मे दफ़ा हुई सहूलियत के नाम पर
बचा ही क्या फिर संस्कृति के नाम पर?

जिन पर होना चाहिए हमें नाज़ आज
उन सब पर क्यूं हमें आती हैं लाज?

पहनते हैं कपड़े मगर किसी और के
खाते हैं खाना मगर किसी और का
बोलते हैं भाषा मगर किसी और की
करते हैं काम मगर किसी और का
आखिर क्या है अपना जो है इस दौर का?

जिन पर होना चाहिए हमें नाज़ आज
उन सब पर क्यूं हमें आती हैं लाज?

क्या दे जाएगे हम बच्चों को धरोहर?
प्रदूषण की कालिख में नहाए महानगर?
या कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग की कुछ वो किताबें
जो चार साल में ही हो जाए obsolete?
या फिर 6 शून्य का bank balance
जो एक घर में ही हो जाए deplete?

न चोटी, न तिलक, न जनेउ है
न सिंदूर, न बिछुए, न मंगलसूत्र है
मां-बाप, सास-ससुर के चरण स्पर्श
न करती है बहू, न करता पुत्र है

गणेश की मूर्ति, नटराज की मूर्ति
मात्र साज-सजावट की वस्तु है

बचा ही क्या फिर संस्कृति के नाम पर?

होटल जा कर खा लेना छौला-समोसा?
कभी इडली-सांभर, तो कभी सांभर-डोसा?
कभी आलू पराठा तो कभी मटर-पनीर?
गाजर का हलवा या चावल की खीर?

dieting और diabetes के बीच ये भी एक दिन खो जाएगे
संस्कृति के नाम पर हम बच्चों को अंत में क्या दे जाएगे?

भला हो Bollywood की फ़िल्मों का
कि होली-दीवाली के त्योहार हैं अब भी जीवित
भले ही हो सिर्फ़ सलवार-कमीज़-साड़ी-कुर्ते
और फ़िल्मी गानों पर नाचने तक सीमित

एक समय हम समृद्ध थे, संस्कृति की पहचान थे
आद्यात्म, दर्शन, कला और नीति की हम खान थे
आयुर्वेद और औषधविज्ञान थे
ब्रह्मास्त्र और पुष्पक विमान थे
नालंदा विश्वविद्यालय विश्वविख्यात था
दूर दूर से ज्ञान पाने आते जहां विद्वान थे

नालंदा क्यूं रह गया बस एक खंडहर?
विलीन क्यूं हुए इंद्रप्रस्थ जैसे नगर?

कब और कैसे क्या हो गया?
सारा ऐश्वर्य हवा क्यूं हो गया?
जिस देश-समाज ने विश्व को शून्य दिया
वो किस तरह हर क्षेत्र में शून्य हो गया?

असली कारण तो सही ज्ञात नहीं
पर शायद हुआ ये अकस्मात नहीं

बची-खुची संस्कृति भी
हमारे सामने ही
विलुप्त हो रही आज है
शायद उस समय वो भी
इस सच्चाई से बेखबर थे
जिस तरह से बेखबर हम आज हैं
 
परिवर्तन है प्रकृति की प्रवृत्ति
और संस्कृति भी अवश्य है बदलती
मगर क्या ये आवश्यक है कि
शून्य ही हो इसकी नियति?

सिएटल,
22 फ़रवरी 2008
=====================
नवजात = newborn
मयस्सर = available
फ़िकर = फ़िक्र, worry, concern
दरविश = दरवेश, mendicant, travelling beggar
आभूषण = jewelry
कट्टरता = fundamentalism
समृद्ध = prosperous
ऐश्वर्य = splendor
विलीन = disappear
शून्य = zero
ज्ञात = known
अकस्मात = suddenly, accidentally
विलुप्त = disappear
परिवर्तन = change
प्रकृति = nature
प्रवृत्ति = tendency
अवश्य = sure
आवश्यक = necessary
नियति = destiny

Tuesday, February 19, 2008

बदली बदली जल में


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

बदली जल बन बन में गई
बन में खिली हर शाख
बदली बन जल न पाती तो
पाती-पाती जल कर
बन बन जाता राख

समंदर जल जल कर बदली बने
बदली फिर जल बन जाए
इसी अदला-बदली से
हमारी जीवन-ज्योति जल पाए

परिवर्तन प्रकृति की प्रवृत्ति
ये है पक्की बात
सुखी रहे हर प्राणी जो
कर ले इसे आत्मसात

सिएटल,
18 फ़रवरी 2008
=========================
Glossary:
बदली = 1. cloud 2. to convert
जल = 1. water 2. burn
बन = 1. to become 2. forest/jungle
पाती = 1. could 2. leaf
आत्मसात = imbibe

Monday, February 18, 2008

स्वामी के दीवाने


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

हर तरफ़ अब यहीं अफ़साने हैं
सब किसी न किसी स्वामी के दीवाने हैं

इतनी बेवकूफ़ी भरी हैं इंसानों में
कि पढ़े-लिखे भी गधे हो जाए
स्वामीजी जो नज़र आ जाए चैनल पर
तो पांच बजे भी उठ के खड़े हो जाए
छोटे-बड़े सब लगते दुम हिलाने हैं
हर तरफ़ अब यहीं अफ़साने हैं
सब किसी न किसी स्वामी के दीवाने हैं

इक हल्का सा इशारा इनका
किसी भी रोगी को चंगा कर दे
इस तरह की आस के बदले में
जो जान और माल फ़िदा कर दे
ऐसे भक्त इन्हे और फ़ंसाने हैं
हर तरफ़ अब यहीं अफ़साने हैं
सब किसी न किसी स्वामी के दीवाने हैं

कभी लंदन तो कभी अमरीका
नहीं ढाका या फिर अफ़्रीका
सिर्फ़ रईसो को भक्त बनाते हैं
आलिशान होटलों में शिविर लगाते हैं
और दावा ये कि गीता के श्लोक समझाने हैं
हर तरफ़ अब यहीं अफ़साने हैं
सब किसी न किसी स्वामी के दीवाने हैं

(कैफ़ी आज़मी से क्षमायाचना सहित)

कहीं ज़मीं तो कहीं आसमां


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

कभी किसी को मुक़म्मल जहां नहीं मिलता
कहीं ज़मीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता

जिसे भी देखिए वो अपने हाल में गुम है
कार मिली है मगर कारपूल नहीं मिलता

तेरे जहां में ऐसा नहीं कि जॉब न हो
कहीं 'सेलरी' तो कहीं 'टाईटल' नहीं मिलता

हुआ है भारत छोड़ो आंदोलन अब कामयाब
मेरे वतन में एक भी होनहार नौजवां नहीं मिलता

अमेरिका में है हर चीज हासिल
मगर आसानी से आशियां नहीं मिलता

दुनिया है आज कम्प्यूटर के दम से
रह जाता दफ़्तरों में ही 'गर चूहा नहीं मिलता

उखाड़ देते हैं कुदरती हरियाली को
मनचाहा बाग बनाने वाला बागबां नहीं मिलता

उनको मिले ख़ुदा जिन्हे हैं ख़ुदा की तलाश
मुझे तो किसी भी मंदिर में मेरा जूता नहीं मिलता

कहता है ज़माना कि राहुल हो गया पागल
मस्जिद में भगवान और मंदिर में ख़ुदा नहीं मिलता

एक निर्दोष स्वर्ण हिरण को मारने वाले के अलावा
मेरी शाकाहारी माँ को भी पूजने के लिए दूजा नहीं मिलता

गाँधी ने पूजा क़ातिल को, माँ ने पूजा शिकारी को
नेता तो दूर यहाँ तो ढंग का देवता नहीं मिलता

रात के बाद सुबह की ये रीत मुझे रास न आई
न होती सुबह तो सपना टूटा नहीं मिलता

सारे दिन शाम का इंतज़ार किया
भरी दोपहर तो सुबह का भूला नहीं मिलता

रह जाती मेरी रचना गुमनामी में
आप कदरदानों का 'गर सहारा नहीं मिलता

(निदा फ़ाज़ली से क्षमायाचना सहित)

Friday, February 15, 2008

मेरे मैनेजर


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

मेरे मैनेजर तू मेरी qualifications को तरसे
मुझे कम देने वाले तू fractions को तरसे

तू बाग बने पतझड़ का, तूझपे फूल न खिले कभी
तू तड़पे मेरी तरह, तुझको promotion न मिले कभी
सड़े तू इस तरह कि recognition को तरसे
मेरे मैनेजर तू मेरी ...

तेरे घर से वीरां कोई वीराना न हो
तू भटके उम्र भर तेरा कोई ठिकाना न हो
तू green card तो क्या H-1 को तरसे
मेरे मैनेजर तू मेरी …

तेरे options एसे डूबे उनका कोई दाम न हो
तेरे group के पास कोई billable काम न हो
तू funds तो क्या donations को तरसे
मेरे मैनेजर तू मेरी …

तू minimum wage पर
Taco, burrito, burger बेंचे
तू vacuum cleaner,
Filter, subscriptions घर घर बेंचे
कोल्हू के बैल की तरह vacation को तरसे
मेरे मैनेजर तू मेरी …

(आनंद बक्षी से क्षमायाचना सहित)

शेयर बज़ार में ज़फ़र


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

फलता नहीं है धन मेरा डूबे हुए बज़ार में
किसका पोर्टफ़ोलिओ बचा है इस उतार में

कह दो आयकर वालों से कहीं और करे कर वसूल
मेरे घर का तो खर्च चलता है उधार में
फलता नहीं है ...

पेट काट काट के खरीदे थे चार कम्पनीयों के शेयर
दो टी-वी पर डाउनग्रेड हो गए दो अखबार में
फलता नहीं है …

कितना है बदनसीब राहुल कि खरीदे हुए
साठ के शेयर बिकते हैं तीन-चार में
फलता नहीं है …

(बहादुर शाह ज़फ़र से क्षमायाचना सहित)

Thursday, February 14, 2008

बस, बस, बस, बस और बस


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

देस में बस ले कर हर जगह
आराम से चले हम जाते थे
पर मन ही मन में
कार के ख्वाब जरुर सजाते थे

परदेस में बस जाने के बाद
हम हो तो यहीं के जाते हैं
पर घर होते हुए भी
पर-घर मान के इसको
अपने घर जाने के
सपने संजोते जाते हैं

आकांक्षाओं पर तो
किसी का बस चलता नहीं
अगर चलता होता तो
कोई घर से निकलता नहीं

परदेस में रहते हैं फिर भी
बस देसी ही कहलाए जाते हैं
अपना तो लेते है विदेश को
पर इसे परदेस ही कहते जाते हैं

"बस! भैया बस!
अब हमें दो बख्श"
सुन ली है मैंने आपकी पुकार
सो बंद करता हूं मैं ये बस पुराण
इससे पहले कि आप कोई छोड़ें बाण

सिएटल,
14 फ़रवरी 2008
=========================
Glossary:
बस = 1. bus 2. settle down 3.control 4.That is all 5.enough

Wednesday, February 13, 2008

Irony और विडम्बना


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

सर में ही रहता है कहीं जाता नहीं है
फिर भी हम क्यूं इसे कहते है भेजा?

सदियों से गंगा-जमुना का काम रहा है बहना
फिर भी हम क्यूं इन्हे कहते हैं मैया?

ज्यादा, और ज्यादा, हम बटोर सके सोना
इसी धुन में हम क्यूं छोड़ देते हैं सोना?

चाची के पति को जब सब कहते हैं चाचा
मामी के पति को जब सब कहते हैं मामा
साली के जो भाई है, वो क्यूं कहलाते हैं साला?

दादा की पत्नी को जब सब कहते हैं दादी
नाना की पत्नी को जब सब कहते है नानी
पापा की पत्नी को फिर क्यूं नहीं कहते हैं पापी?

जिसे उंगली में पहनते है, उसे क्यूं कहते हैं अंगूठी?
जो हाथ में आता नहीं है, उसे क्यूं कहते हैं हाथी?

जिसे पीते नहीं हैं, उसे क्यूं कहते हैं पान?
जिसे जानते नहीं हैं, उसे क्यूं कहते हैं जान?

जब सामने ही रखी है, तो उसे क्यूं कहते हैं मैंथी?
जब वो जलती नहीं है, तो क्यूं बुझती है पहेली?

काले-सफ़ेद को क्यूं नहीं मानते हैं रंग?
जब Screw हो ढीला, तो क्यूं होते हैं तंग?

जो जीत जाता है, वो क्यूं चाहता है हार?
इस तरह के प्रश्न जीवन में मिले बार-बार

इन सवालों को
इन खयालों को
दिए गए हैं जो नाम, irony और विडम्बना
वो भी अपने आप में हैं, irony और विडम्बना

इससे बड़ी irony और क्या होंगी
कि जिस बात पर हमें आए रोना
उसे हम कहते हैं 'आए-रोनी'?

इससे बड़ी विडम्बना और क्या होगी
कि जो बाते हमें लगे dumb
उसे हम कहते हैं we-dumb-naa?

सिएटल,
13 फ़रवरी 2008

Valentine (2007)

आज का दिन है प्यार का प्यार के इज़हार का   आज का दिन है इंतज़ार का प्यार के इक़रार का   आज का दिन है बे-मौसम बहार का महंगे गुलदस्तों के बाज़ार का   आज का दिन है इश्तेहार का प्यार के ज़बर्दश्त 'PR' का फरवरी 2007 सिएटल

Valentine (English)

Its Valentine's day

Lets not worry
On this special day
Valentine's day is pure fun
Every possible way

You know why?
Because, Love, you are my Valentine.

Today is the day
To rise and shine
To be happy
And not to whine

You know why?
Because, Love, you are my Valentine.

Evening is the time
When we will go out
Sure we will have fun
Absolutely no doubt

You know why?
Because, Love, you are my Valentine.

Tuesday, February 12, 2008

Valentine (2008)


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

चाहे हो स्मार्ट, चाहे हो fool
Valentine के दिन तो सब लाते हैं फूल

फ़रवरी के महीने में भी कभी खिलते हैं फूल?
फिर भी खरीदे जाते हैं लाखों-करोड़ों के फूल
मार्केटिंग ने आंखो में जो झोंक दी ऐसी धूल
चाहे हो स्मार्ट, चाहे हो fool
Valentine के दिन तो सब लाते हैं फूल

चाँकलेट ले कर, इत्र ले कर या ले कर गले का हार
श्रीमान दिखलाते हैं श्रीमती को अपना प्यार
ताकि पिछले सारे झगड़े श्रीमती जाए भूल
चाहे हो स्मार्ट, चाहे हो fool
Valentine के दिन तो सब लाते हैं फूल

आँफ़िस हो पोस्ट आँफ़िस हो या हो कील-हथौड़े की दुकान
घर हो चर्च हो या हो कोई सार्वजनिक स्थान
हर जगह गुलाबी दिल हवा में रहा है झूल
चाहे हो स्मार्ट, चाहे हो fool
Valentine के दिन तो सब लाते हैं फूल

नन्ही सी जान है और हो रहा है प्रणय से परिचय
क्यूं नही समाज के लिए ये चिंतन का विषय?
दिल काट के कार्ड बनाना सीखा रहे preschool
चाहे हो स्मार्ट, चाहे हो fool
Valentine के दिन तो सब लाते हैं फूल

12 फ़रवरी 2008
सिएटल

पहेली 15


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

एवरेस्ट पर ये आज तक चढ़ी नहीं हैं
युद्ध में भी ये आज तक लड़ी नहीं हैं
पहनती भी ये साड़ी-चूड़ी नहीं हैं
दिखने में भी लगती बूढ़ी नहीं हैं

जिस बात से अच्छी खासी शादी टूट जाती है
जिस बात से बसी बसाई गृहस्थी लूट जाती है
उसी बात को इन्होने किया था नज़र-अंदाज़
आखिर क्यूं और क्या था इसका राज़?
क्यूंकि दूर-दृष्टी से इन्होने लिया था काम
इनको तो हर कीमत पर हासिल करना था राज

छीन लेती अगर पति से समर्थन ये अपना
पार्टी का समर्थन बस रह जाता एक सपना

जल्दी दे दे उत्तर जो सही सही है
ये आज यहां तो कल और कहीं हैं
एक जगह कहीं भी ये रुकती नहीं हैं
इन दिनों जब भी नज़र आती हैं तो छवि सब जगह बस यहीं है
मुस्काराती जाए और हाथ हिले, रीत भी तो वैसे बिलकुल यहीं है
[इस पहेली का हल अंतिम पंक्ति में छुपा हुआ है। ध्यान से देखे तो साफ़ नज़र आ जाएगा। उदाहरण के तौर पर देखे 'पहेली 1'. आप चाहे तो इसका हल comments द्वारा यहां लिख दे। या फिर मुझे email कर दे इस पते पर - upadhyaya@yahoo.com ]

पहेली 14


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

500-600 साल से ज्यादा पुराना नहीं
दुनिया में किसी से इसका याराना नहीं

फिर भी यहीं बस जाने के ख्वाब सजाते हैं लोग
सारे जहां के हर कोने में इसके गुण गाते हैं लोग

हज़ार अवगुण गिनाते हैं जो
देर सबेर यहीं बस जाते हैं वो

किन खयालों में आप खो गए जनाब?
जल्दी बताइए इस पहेली का जवाब
कह दे अगर इसका हल आता नहीं
सच कहने से तो मैं घबराता नहीं
यहां आ कर ही पूरे हुए जो कभी देखे थे ख्वाब
जब से मुझे मिली (अ) मेरी कार (ब) मेरी जाँब

[इस पहेली का हल अंतिम पंक्ति में छुपा हुआ है। ध्यान से देखे तो साफ़ नज़र आ जाएगा। उदाहरण के तौर पर देखे 'पहेली 1'. आप चाहे तो इसका हल comments द्वारा यहां लिख दे। या फिर मुझे email कर दे इस पते पर - upadhyaya@yahoo.com ]

Monday, February 11, 2008

पहेली 13


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

पहले पीते थे चाय
आजकल हम इसे हैं पीते
Fast food के साथ तो ऐसे जुड़े
जैसे जूते के साथ जुते हो फ़ीते

शांति से बैठ कर सोचिए इस पहेली का हल
वहाँ जहाँ बच्चे इसे पी कर न करे कोलाहल
[इस पहेली का हल अंतिम पंक्ति में छुपा हुआ है। ध्यान से देखे तो साफ़ नज़र आ जाएगा। उदाहरण के तौर पर देखे 'पहेली 1'
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पहेली 12


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

कुछ कहे जन्मभूमि तो कुछ कहे चरण की धूलि
कुछ कहे तोप तो कुछ कहे ये किस खेत की मूली?
कुछ ने इसे त्यागा तो कुछ इस के लिए चढ़ गए सूली
कुछ इसे बदकिस्मती कहे तो कुछ की छाती जाती है फूली

ये है जननी, ये है माता, गर्व से सारे मुफ़लिस हैं कहते
और रईसजादे इसे समस्या, भार, तकलीफ़, रोग हैं कहते
[इस पहेली का हल अंतिम पंक्ति में छुपा हुआ है। ध्यान से देखे तो साफ़ नज़र आ जाएगा। उदाहरण के तौर पर देखे 'पहेली 1'
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Sunday, February 10, 2008

पहेली 11


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

ये आ गया एक बार
तो फिर जाता नहीं
ये टूट जाता है
तो फिर जुड़ता नहीं
इसे फेंकते हैं लोग
पर कोई लपकता नहीं

हल्का भी है
और भारी भी
छोटा भी है
और बड़ा भी

हल्के से राहत है
भारी से दु:ख
छोटे से परेशानी है
बड़े से सुख

आए दिन सुनने में आते हैं
इसके दौरे मुझे
पर ठीक से अभी तक नहीं
मिले ब्यौरे मुझे

न किसी से मिला
कोई यात्रा वृत्तांत
न किसी ने दिखाया
कोई 'स्लाईड शो'
भई, ऐसा भी क्या दौरा
जिसका कोई एक फोटो तक न हो?

दौरे के बाद
इतने भयभीत हो जाते हैं लोग
कि सब कुछ छोड़ के
अपनाने लग जाते हैं योग

अकलमंद नहीं मंदअकल समझे जाएगे आप
उत्तर देने में ज्यादा देर यदि लगाएगे आप
[इस पहेली का हल अंतिम पंक्ति में छुपा हुआ है। ध्यान से देखे तो साफ़ नज़र आ जाएगा। उदाहरण के तौर पर देखे 'पहेली 1'
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पहेली 10


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

न तो है ये 'चीज़'
और न ही ये खाने की चीज़
फिर भी बच्चे खुश हो के खा लेते हैं इसे
और कुछ बेवकूफ़ ऐसे भी हैं
जो बिन तले ही 'फ़्राई' कर देते हैं इसे

जिनके पास है ये
उन्होनें तो उत्तर भेज दिया हमें
अगर आपके पास भी है
तो अभी तक उत्तर क्यूं नहीं भेजा हमें?
[इस पहेली का हल अंतिम पंक्ति में छुपा हुआ है। ध्यान से देखे तो साफ़ नज़र आ जाएगा। उदाहरण के तौर पर देखे 'पहेली 1'
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Saturday, February 9, 2008

पहेली 9


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

ये कटती है पर जुड़ती नहीं
ये चढ़ती है पर उतरती नहीं
ये जमती है पर पिघलती नहीं
ये बहती हैं पर रूकती नहीं

अंदर बाहर एक ही है नाम
कुछ देते हैं इसे घी का नाम
मेरे पहेली ने शायद भर दिया इसमें दम
दूसरों का ज्यादा दिखता है अपना कम
[इस पहेली का हल अंतिम पंक्ति में छुपा हुआ है। ध्यान से देखे तो साफ़ नज़र आ जाएगा। उदाहरण के तौर पर देखे 'पहेली 1'
आप चाहे तो इसका हल comments द्वारा यहां लिख दे। या फिर मुझे email कर दे इस पते पर - upadhyaya@yahoo.com
]

पहेली 8


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

सुबह शाम उभर आती है ज़रुरत
नहीं मिले तो उतर जाती है सूरत
मिलता है हर एक फ़ार्म पर
यहां तक कि 'एप्लिकेशन फ़ार्म' पर
ये सर्वत्र है विराजमान
चाहे हो पोस्ट आँफ़िस या हो दुकान

बूझना है आपका काम
पहेली में ही लिखा नाम
[इस पहेली का हल अंतिम पंक्ति में छुपा हुआ है। ध्यान से देखे तो साफ़ नज़र आ जाएगा। उदाहरण के तौर पर देखे 'पहेली 1'
आप चाहे तो इसका हल comments द्वारा यहां लिख दे। या फिर मुझे email कर दे इस पते पर - upadhyaya@yahoo.com
]

पहेली 7


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

कुछ लेते हैं इसे छोड़ने के लिए
कुछ लेते हैं इसे तोड़ने के लिए

सुबह शाम खाते हैं कच्चा
अगर पूरी हो तो और भी अच्छा
लगता है तुम खा गए गच्चा
अगर अभी तक समझ न पाए बच्चा
[इस पहेली का हल अंतिम पंक्ति में छुपा हुआ है। ध्यान से देखे तो साफ़ नज़र आ जाएगा। उदाहरण के तौर पर देखे 'पहेली 1'
आप चाहे तो इसका हल comments द्वारा यहां लिख दे। या फिर मुझे email कर दे इस पते पर - upadhyaya@yahoo.com
]

पहेली 6


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

एक है नाम दो हैं रुप
जल्दी बतलाओ क्यूं हो चुप
सवाल सीधा सादा है
कभी नर तो कभी मादा है
नर ही सब को प्यारा है
बूझो किधर इशारा है

नर को सबने हँसते-हँसते गले लगाया है
मादा जिसके हाथ आई, मातम गीत ही गाया है

नर मिले तो मिला पुरुस्कार
मादा मिले तो हुआ तिरस्कार

क्या शादी और क्या है प्यार
जहाँ न हो इसकी बहार
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पहेली 5


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

सांभर के साथ इसे पी जाओ बच्चा
अगर पूरी हो तो और भी अच्छा
कुछ लोग खुश हो के पिलाते हैं इसे
देखे हैं कई जो सिर्फ़ निभाते हैं इसे
लगता है तुम खा गए गच्चा
अभी तक अगर समझ न पाए बच्चा
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पहेली 4


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

उसे काली बरसती घटाओं से उतारा गया
गरजते बरसते झरनों से चुराया गया

उसके लिए खाक छानी खानों की
उससे बसती है बस्ती इंसानों की

न चैन मिलता है न नींद आती है
जब जब वो मुझसे दूर चली जाती है
गोया मेरी महबूबा वो हो नहीं सकती
बेगम की दुनिया भी उसी से है चलती

नहीं है वो कोई नौकरानी या झाड़ू पौछा लगाने वाली
वो है सबसे शक्तिशाली, झटके दे दे कर भगाने वाली

और फिर कभी इतनी सीधी कि इशारों पर चलने वाली
और कभी इतनी चंचल कि हाथ तक न आने वाली

दौलत की नहीं है भूखी फिर भी रोज ही है बिकती
है बहुत बेवफ़ा, किसी के साथ नहीं है टिकती

रोशन है आप, आबाद है आप
उसके बिना बिलकुल बर्बाद है आप
रहते नहीं इसमें बिच्छू और साँप
उसका बिल भरते हैं हम और आप

कार नहीं तो बेकार है आप
बस नहीं तो बेबस है आप
और अगर ये भी नहीं तो बेबी जली हैं आप
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Friday, February 8, 2008

पहेली 3


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

जो कल था
वही फिर कल होगा
उसका जवाब कल भी कल था
और हमेशा की तरह कल भी कल होगा

मैंने तो चाहा था
उसके आगोश में रहना
पर दुनिया ने कहा
भाई साहब, ये तो है बहना

डरती है वो दुनिया से शायद
इसीलिए जो कल था
वही फिर कल होगा
और उसका जवाब
हमेशा की तरह सिर्फ़ कल-कल होगा

उसकी अनवरत कल-कल से
अभी तक भरे नहीं हैं मेरे कलसे

शायद होगी उसे दुनिया की शरम
या हैं ये न मिलने के बहाने
पर चाहे जो भी हो वजह
मुझे तो आंसू नहीं हैं बहाने

लाख बंदिशे चाहे लगा ले ज़माना
आशिक को तो अपना सिक्का जमाना

भले ही पहचानी जाती हो परी शरम से
आदमी तो पहचाना जाता है अथक परिश्रम से

बूझो कौन है वो जिसे मैं इतना चाहूं
कि उसकी आस में हर दिन दीप जलाउं
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पहेली 2


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

सारे सयाने
हैं इसके दीवाने
करते हैं लड़ाई
पर होता नहीं शोर-शराबा
मारते हैं लोग
पर होता नहीं खून-खराबा
कभी दौड़ाते हैं घोड़े
तो कभी लगाते हैं रोड़े

64 खानों के बीच
दो राजा, दो रानी और दो दल हैं
उंट भी हैं, घोड़े भी हैं और हाथी भी हैं
न जाने क्यूं सैनिक फिर भी चलते पैदल हैं?

खेलना है आसान
जीतना है मुश्किल
राजा को मात देना
जिस की है मंजिल

बूझिए जरा
हम भी देखे आप कितने हैं काबिल?
कौन सा है ये खेल
जिसमें शत रंज होते हैं हासिल?
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पहेली 1


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

इस पहेली का हल अंतिम पंक्ति में छुपा हुआ है। ध्यान से देखे तो साफ़ नज़र आ जाएगा।

ये ऐसा तीर्थ-स्थान है
जिसने दिए संत महान हैं
जहां भक्त करते गंगा स्नान हैं
जहां जल रहा अनवरत श्मशान है
आप भी उससे नहीं अनजान है
इतना मीठा यहां का पान है
कि जैसे मीठे आम का बना रस भाई जान है

उत्तर: बनारस
वो कैसे? -- कि जैसे मीठे आम का बना रस भाई जान है

Thursday, February 7, 2008

इंग्लिश हिंदी मिक्स


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

इंग्लिश हिंदी मिक्स भाषा का
देखो अजब तमाशा
 
मेरी 'ईनकम'
हमेशा रही कम
बढ़ते गए एक्स्पेंस
बढ़ते रहे aches और pains
 
रहता था बे-एरिया में
कहलाता था बे-वासी
कोई अचरज़ नहीं जो
मेरी ज़िंदगी भी थी बेवा-सी
 
कहाँ तो वो ब्रज में भ्रमण करना
और कहाँ 'ब्रिज' पर सुबह शाम सफ़र करना
 
जब मैं था स्कूल में
एक हादसा वो भी सुनो
नाता पड़ा मेरा एक fraternity से
नाम था उसका 'रो बेटा रो'
 
पिछली नौकरी में
एक थे मेरे साथी
नाम था उनका रामानुज
पर कहलाते थे राम
एक थे भद्रलोक
जो कहलाते थे रे
जब भी वे दुआ सलाम करते
सुबह शाम जब भी वे मिलते
मुंह से निकलता 'हाय राम' और 'हाय रे'
 
चक्कर लगाता था मंदिरों के
बचा रहू बुरे दिनों से
मिले एक पुजारी
ग्रीन कार्ड धारी
जो खाना नहीं बनाते
खाते हैं 'बनाना'
 
मैंने कहा साधो
मुझे आशीर्वाद दो
उन्होने कहा बेटा
मैने तुझे जा 'ब्लेस' किया
हाय रे मेरी किस्मत
उन्होने मुझे 'जाँबलेस' किया
 
'ए बी सी डी' की सीड़ी पर संस्कृति बन 'कल्चर' गई
नयी पीड़ी जिसे पिज़्ज़ा के साथ कल चर गई
'कल्चर' यूं लगे जैसे 'वल्चर' की बहन
इसमें नहीं मिलती रहन सहन की झलक
ग़म देखा है इन्होने सिर्फ़ 'बबल गम' में
जीवन मरण की नहीं इन्हें भनक
 
============
Glossary:
Fraternity = a local or national organization of male students, primarily for social purposes, usually with secret initiation and rites and a name composed of two or three Greek letters, such as Alpha Sigma Mu. Phi Kappa Delta etc.
'रो बेटा रो'= 1. Rho Beta Rho 2. Cry baby cry
बे-एरिया = San Francisco Bay Area
बे-वासी = 1. bay resident 2. without a residence 3. non-resident.
बेवा-सी = widow like

Tuesday, February 5, 2008

24/7


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

अमावस की रातें
पूनम की रातें
कृष्णपक्ष की बातें
शुक्लपक्ष की बातें
रह गई हैं बस किताबी बातें

24/7 ज़िन्दगी की हैं ये निराली सौगातें

आज का देवता है google
जो सब देता है उगल
बस एक कम्प्यूटर लीजिए
और सब कुछ जान लीजिए
आप बात करते हैं कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष की?
इन्हें तो खबर हैं धरती और चांद के पग पग की

सूरज उगता है
सूरज डूबता है
इन सब बातो से
आज मन उबता है

ये सब हैं घिसे-पीटे मुहावरे
आज का ज़माना है revolutionary
पहली बात तो धरती घूमती है
और सूरज रहता है stationary

पूरब का ध्यान-ज्ञान
पश्चिम की रंगीली रातें
ये सब हो गई हैं पुरानी बाते
World is flat की है ये निराली सौगातें

Saturday, February 2, 2008

चौपाईया


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

पिछले दिनों जब मैं दिल्ली में था तब घर पर अखंड रामचरितमानस का पाठ था। आमंत्रित तो कई थे पर चूंकि अष्टमी-नवमी बुध-गुरु की थी तो काम से अवकाश न मिलने पर सबका सहयोग नहीं मिल पाया। परिणाम ये हुआ कि अधिकांश पाठ मैंने किया। उत्तर कांड खत्म करते करते, चौपाईयों की लय दिमाग में बस गई। जो दूसरे दिन गोवर्धन परिक्रमा के दौरान भी साथ में रही और दिमाग में कुछ चौपाईया बन गई - जिन्हे मैं यहां प्रस्तुत कर रहा हूं। और पाठ की तरह मैंने इनमें दोहा और सम्पूट भी जोड़ दिए हैं।

[पाठ के दौरान ये सम्पूट लगाया गया था -
सियावर राम, जय जय राम,
मेरे मन बसियो सीताराम]

कैसी तरक्की इंसान ने पाई। दो कदम आगे तो पीछे अढ़ाई।

जुटाए सुविधा के साधन बहुतेरे। ताकि हाथ-पाँव न दुखे बहू तेरे।

घर सारा इन से भर जाए। समय सारा इनमें कट जाए।

दोहा - ये तेरे चाकर नहीं, तू इनकी है दास [रामा, तू इनकी है दास]

दिन रात आगे पीछे इनके समय बिताय। (1)

सम्पूट - सदा किया बस काम काम काम

नहीं लिए ईश्वर के दो नाम।



जब संकट में घिर जाए। आत्मविश्वास इतना गिर जाए।

हाथ जोड़े और हाथ फ़ैलाए। पांव छूए और सर झुकाए।

हर किसी को माई-बाप बनाए। रो-रो के दु:ख-शोक मनाए।

दोहा - इधर-उधर घुमत, घुमत घुमत थक जाए [रामा, घुमत घुमत थक जाए]

हाय नौकरी, हाय पैसा, रटत-रटत मर जाए। (2)

सम्पूट - सदा किया बस काम काम काम

नहीं लिए ईश्वर के दो नाम।



महानगर के हाल बेहाल हैं। महानगर की चाल बेढाल है।

जैसे जैसे आबादी बढ़े है। वैसे वैसे बर्बादी बढ़े है।

पेड़ पौधे सब काट गिराए। काट-कूट के फ़्लैट बनाए।

गोदामों में फल पकाए। गमलों में फूल लगाए।

सारा दिन दफ़्तर में काटे। सांझ सवेरे सड़क पर काटे।

दोहा - रात-बेरात खाए-पीए, हो जाए बीमार [रामा, हो जाए बीमार]

इस तरह काटे जीवन, काट काट पछताय (3)

सम्पूट - सदा किया बस काम काम काम

नहीं लिए ईश्वर के दो नाम।



दिल्ली,

19 जनवरी 2008

Friday, February 1, 2008

ओबामा या क्लिंटन?

ओबामा या क्लिंटन? किसे वोट देंगे सिटिज़न? यही प्रश्न है क्षण-क्षण हर चैनल पर हर पेनल पर इनकी बक-बक इनकी नोक-झोक दफ़्तर और बाज़ार में रेडियो और अखबार में इनके वादे इनके ईरादे कभी आए सीधे-सीधे तो कभी आए छन-छन ओबामा या क्लिंटन? किसे वोट देंगे सिटिज़न? यहीं प्रश्न है क्षण-क्षण जनम-जनम से इस चमन में एक ही तरह के फूल खिले हैं एक ही तरह के माली मिले हैं क्या इस बार कुछ बदलेगा? एक नए रंग का फूल खिलेगा? या एक मालिन के हाथों इसे नया एक रूप मिलेगा? आशा की नूतन कलियां पूछ रही हैं वन उपवन ओबामा या क्लिंटन? किसे वोट देंगे सिटिज़न? यहीं प्रश्न है क्षण-क्षण नहीं खड़े हो सकते दोनों एक साथ हैं Nomination की जिम्मेदारी Convention के हाथ है दोनों ही हैं unconventional चिंताग्रस्त है convention ओबामा या क्लिंटन? किसे वोट देंगे सिटिज़न? यहीं प्रश्न है क्षण-क्षण चाहे जिसे ये nominate करें कोई न हमें आश्वासित करे शक की निगाहे हैं सब पर निर्णय होगा जब सर पर तो कौन निकलेगा इनमें से कैनेडी या लिंकन? ओबामा या क्लिंटन? किसे वोट देंगे सिटिज़न? यहीं प्रश्न है क्षण-क्षण प्रश्न कभी खत्म होते नहीं चुनाव कभी खत्म होते नहीं आज ये तो कल कुछ और निरंतर बना रहता है शोर कुछ महीनों बाद नवम्बर में चारों ओर होगी गुंजन डेमोक्रेट या रिपब्लिकन? किसे वोट देंगे सिटिज़न? यही प्रश्न होगा क्षण-क्षण सिएटल, 1 फ़रवरी 2008 (चुनाव भी देख ले) Due to popular demand, here is the literal translation of the poem in English. Obama or Clinton? Obama or Clinton? Who will get the votes of citizens? This question is being asked every second. On every channel On every panel Their quotes Their quibbles In office and in street On radio and in newspapers Their promises Their intentions Either are being broadcast as is Or they are being broadcast filtered Obama or Clinton? Who will get the votes of citizens? This question is being asked every second. For generations and generations In this garden Same kind of flowers have blossomed Same type of gardners have been found Will something change this time around? Can a flower of new color blossom this time? Can a female gardner give this garden a new structure? Buds of hope are asking this to the forests and parks Obama or Clinton? Who will get the votes of citizens? This question is being asked every second. Both cannot be on the ballot at the same time Nomination is in hands of convention But both are very unconventional That is worrisome for the convention Obama or Clinton? Who will get the votes of citizens? This question is being asked every second. Whoever gets nominated None of them can provides assurance We are suspicious of every one When a key decision is at stake Who will turn out to be Kennedy or Lincoln? Obama or Clinton? Who will get the votes of citizens? This question is being asked every second. Questions never end Elections never end If today this then tomorrow something else This noise continues endless Few months later in November The din will be everywhere Democrate or Republican? Who will get the votes of citizens? That question will be asked every second. (See Elections as well)