Tuesday, May 6, 2014

होंगे फ़ना कदमों में तेरे

होंगे फ़ना कदमों में तेरे
कहता था सनम हमेशा मुझे
रूकेगा कोई, खींचेगा फोटो
इसका न था इल्म ज़रा भी मुझे

बहाके खून
बहारें गईं
दुनिया ने समझा
तमाशा इसे

रगों में बहे
या रंगों में बसे
खूं तो खूं है
चाहे जिस रूप में रहे

मैं जड़ से हूँ निकला
लेकिन जड़ तो नहीं
शीशम के फ़्रेम में
न जड़ दो मुझे
6 मई 2014
सिएटल । 513-341-6798

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2 comments:

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

सुन्दर रचना ...
भ्रमर 5

Anonymous said...

"होंगे फ़ना कदमों में तेरे
कहता था सनम हमेशा मुझे
रूकेगा कोई, खींचेगा फोटो
इसका न था इल्म ज़रा भी मुझे"

कविता का title और पहली lines अच्छी लगीं। "जड़" शब्द का अलग-अलग use बहुत meaningful है:

"मैं जड़ से हूँ निकला
लेकिन जड़ तो नहीं
शीशम के फ़्रेम में
न जड़ दो मुझे"

कविता के साथ photo का होना भी बढ़िया लगा!