Wednesday, April 8, 2020

कोविड और हम

आँकड़े भयावह हैं। हर तरफ़ तबाही है। पिछले 24 घण्टों में 7,326 मौत के घाट उतर गए। यानि हर 12 सेकण्ड में कहीं न कहीं कोई न कोई कोरोना बीमारी से तड़प कर गुज़र गया। 

लेकिन इन में से कोई भी चेहरा हमारा जाना-पहचाना नहीं। सो हमें कुछ महसूस ही नहीं होता है। जैसे कि किसी आतंकवादी घटना में पचासों गुज़र जाए, हमें कुछ नहीं होता। 

एक काल्पनिक पात्र आनन्द पर्दे पर मरता है, तो हमारी आँखें भर आती हैं। 

हम कहानी पर रोते हैं। आँकड़ो पर नहीं। 

यह कहानी है अमेरिका के एक बड़े शहर डिट्रोयट के बस ड्राईवर की। उसने फ़ेसबुक पर एक वीडियो डाला कि कैसे एक यात्री बहुत लापरवाही से उस पर खाँस रही थी। उसे डर था कहीं वह संक्रमित न हो जाए। और जिसका डर था वही हुआ। वह संक्रमित भी हुआ और वह अब इस दुनिया में नहीं है। 

जो नहीं चेतें हैं, अब चेत जाए। 

किसी अनजानी शक्ति से रक्षा की आस न रखें। आज हनुमान जयंति पर फिर वही घिसी-पिटी चौपाइयाँ दौड़ रहीं हैं। संकट हरे मिटे सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा। सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डरना। 

जितना भी जप लो। जिसको भी जप लो। कोई रक्षा करने वाला नहीं है। मन्दिर, मस्जिद, गिरजाघर क्यूँ बन्द हैं? क्यूँकि जप, तप, भजन, प्रवचन से कुछ हासिल नहीं होता। 

कई जगह तो अफ़वाह भी उड़ रही है कि शाकाहारी सुरक्षित हैं। जबकि इसका कोई प्रमाण नहीं है। 

घर में रहें। सुरक्षित रहें। ज़रूरी काम से यदि कहीं जाए तो दूरी बनाए रखें एवं शीघ्र वापस लौट आए। 


राहुल उपाध्याय । 8 अप्रैल 2020 । सिएटल

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