मिले न फूल तो पत्तों की फ़ोटो खींच ली
कुछ इस तरह से मैंने एल्बम भर ली
समस्याएँ अनेक हैं हमारी दुनिया में
प्रभु का नाम लिया और आँखें बंद कर ली
मैं कौन हूँ और किसे मैं क्या शिनाख़्त करूँ
मुझे तो जो भी मिला उससे दोस्ती कर ली
चले भी आओ कि हम साथ-साथ चलें
कहाँ है वो जो कहे मुझसे बातें पगली
हुआ हूँ आज मैं अपने आप से ऐसे मुख़ातिब
कि मैं हूँ ख़ुद ही मगर लगूँ हमशकली
शिनाख्त = to identify
मुख़ातिब = किसी की ओर मुँह करके बातें करने वाला; अभिमुख
(इंदीवर से क्षमायाचना सहित)
1 नवम्बर 2015
सिएटल | 425-445-0827
1 comments:
कविता बढ़िया लगी। Original गाने की धुन पर बहुत सुंदर तरह से गायी जा सकती है। कविता की हर दो lines meaningful हैं।
"मिले न फूल तो पत्तों की फ़ोटो खींच ली
कुछ इस तरह से मैंने एल्बम भर ली"
हर किसी को रंग-बिरंगे फूल नसीब नहीं होते। जो मिला है उसी में खुशी तलाश करनी चाहिए।
"मैं कौन हूँ और किसे मैं क्या शिनाख़्त करूँ
मुझे तो जो भी मिला उससे दोस्ती कर ली"
हम न तो खुद को ठीक तरह जानते हैं और न ही दूसरों को। अच्छा है कि हर किसी को प्यार से ही मिलें और प्यार का ही सम्बंध जोड़ें। लोगों की जात, finances, career, धर्म से उनकी पहचान न बनाएं। इंसान को सिर्फ इंसान की तरह मिलें।
"हुआ हूँ आज मैं अपने आप से ऐसे मुख़ातिब
कि मैं हूँ ख़ुद ही मगर लगूँ हमशकली"
यह lines बहुत गहरी हैं। मुझे बहुत अच्छी लगीं।
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