खील खिलाना अलग है
खिलखिलाना अलग है
खील खिलाना है दीवाली का अनिवार्य अंग
मुस्कुराना मानवता का मज़हब है
मुस्कुराहट है
तो मोहब्बत है
मोहब्बत है
तो हम है
मोहब्बत यक़ीं है
मोहब्बत ज़बाँ है
वादा करो
तो निभाना अवश्य
यह कहती आशिक की धड़कन है
मोहब्बत जवाँ है
मुसल्सल ज़मज़मा है
जिसका अक्स हो रक़्स में
ऐसे इश्क़ में अश्क़ ही कहाँ है
मुस्कुराहट जहाँ है
सभ्यता वहाँ है
दूध और घी की बहती नदियाँ वहाँ है
सजदे में झुकता सबका जबीं वहाँ है
खील खिलाना अलग है
खिलखिलाना अलग है
खील = भुना हुआ चावल; मुरमुरा, जिसे दीवाली के दिन हाथी-घोड़े जैसे दिखनेवाले बताशों के साथ खाया जाता है
ज़बाँ = ज़ुबान, वचन
मुसल्सल ज़मज़मा = uninterrupted music
अक्स = reflection
रक़्स = नृत्य
अश्क़ = आँसू
जबीं = forehead
10 नवम्बर 2015
सिएटल | 425-445-0827
0 comments:
Post a Comment