हर आदमी अपनी ज़िंदगी जीता है
हर क्षण, हर पल, हर हाल में जीता है
हर आदमी अपनी ज़िंदगी जीता है
जो हार जाता है, वो जाता है
जो नहीं हारा, वो जीता है
जब तक न हो कोई हार
पूजा नहीं होती
सिर्फ़ नहलाने से
पूजा नहीं होती
जब तक न हो कोई हार
पूजा नहीं होती
जीत के नशे में
पूजा नहीं होती
रोज़ा रोज़ा रखे
और फ़रीदा उपवास
ऐसी बातें
रोज़ाना नहीं होतीं
चलो चलें
किसी प्यासे को
पानी पिला आएँ
ऐसी बातें
ए-सी में नहीं होतीं
सैलानी हो
और सैलाना से हो
ऐसी बातें
तर्क संगत नहीं होतीं
अगर कोई बंदा
गाना न गाए
तो वो बेगाना नहीं होता
हर शास्त्र
जो पाकिस्तान से आए
पाक-शास्त्र नहीं होता
कैसे कह दूँ कि
तुम हो मेरी
जबकि तुम्हारा नाम सीता है
तुम वो उपवन हो
जिसे राम ने ही हर हर युग में सींचा है
कैसे कह दूँ कि
तुम हो मेरी
जबकि तुम्हारा नाम कुछ और है
प्रेम है, प्यार है
पर मेरी कोई और है
न बुद्ध थे बुद्धू
न राम ने सीया
यह है भाषा की सीमा
हर हस्ती परिभाषित नहीं होती
(सैलानी = जो सैलाना से हो; घुमक्कड़ी
सैलाना = मध्य प्रदेश के रतलाम जिले की तहसील
कहा जाता है कि सैलाना वाले सैलाना छोड़कर कहीं और नहीं जाते।
यह रचना पढ़ते हुए पाठक ध्यान रखें कि मेरी पश्चिमी देशों में लोकप्रिय नाम भी है। )
5 दिसम्बर 2015
सिएटल | 425-445-0827
2 comments:
"हर आदमी अपनी ज़िंदगी जीता है
हर क्षण, हर पल, हर हाल में जीता है"
कविता की length देखकर और पहली दो lines पढ़कर लगा कि बहुत लंबी philosophical कविता है। जैसे-जैसे आगे पढ़ा - कई lines को multiple times पढ़ा - तो realize हुआ कि कविता light-hearted है, funny है :) Word-play funny है। Last की line "यह है भाषा की सीमा, हर हस्ती परिभाषित नहीं होती" बात को serious note पर अच्छी तरह summarize करती है।
Comment on email:
Interesting concoction - even though it appears a bit random.
Post a Comment