ये आँखें बोलती हैं
सब को तोलती हैं
ज़बाँ का, कान का काम
ख़ुद को सौंपती हैं
कहे इससे न मिलना
कहे उससे न मिलना
ये दुनिया है सयानी
दिलों को तोड़ती है
कहे इससे न मिलना
कहे उससे न मिलना
ये दुनिया की नादानी
दिलों को जोड़ती है
है कोई मीरा कहीं पे
है कोई राधा कहीं पे
तो कोई तुलसी के दल सी
प्रभु को ओढ़ती है
कभी हम थे बेगाने
तो थे हम भी सयाने
है आज दिल जो लगाया
आत्मा झकझोड़ती है
6 दिसम्बर 2015
सिएटल | 425-445-0827
3 comments:
कविता 20 lines की है - छोटी सी - और सब lines बढ़िया हैं। आँखें दिल का mirror होती हैं पर इनसे हम कई negative judgements भी pass करते हैं - यह सच है। दुनिया से दूर होने के, लोगों से न मिलने के दो opposite reasons आपने एक साथ लिखे हैं - interesting लगा। दुनिया सयानी है, दिलों को तोड़ देगी; दुनिया नादान है, दिलों को जोड़ देगी। सही है।
"है कोई मीरा कहीं पे
है कोई राधा कहीं पे
तो कोई तुलसी के दल सी
प्रभु को ओढ़ती है"
यह lines सुंदर हैं। "दल" का अर्थ पढ़ा तो बात ज़्यादा ठीक से समझ में आयी।
"कभी हम थे बेगाने
तो थे हम भी सयाने
है आज दिल जो लगाया
आत्मा झकझोड़ती है"
यह last lines बहुत अच्छी हैं कि जब दिल लगाया तभी भीतर से मन की पुकार सुनाई दी, नहीं तो उस आवाज़ से हम बेख़बर ही रहते हैं।
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आदरणीय राहुल जी
बहुत ही सुन्दर कविता- आँखे बोलती है.
बधाई.
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Thought provoking! Last two paragraphs seem to drift aaway from the central theme.
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