वादा फ़रामोश वादा न करे ऐसा नहीं होता
ये सियासत है, सियासत में क्या-क्या नहीं होता
हम पुरस्कार भी लौटाएँ तो हो जाते हैं बदनाम
वे क़त्ल भी करे तो चर्चा नहीं होता
हम होते, तुम होते तो ऐसा नहीं होता
जहाँ भी होता है झगड़ा, वहाँ हमसा नहीं होता
लेती है ज़िंदगी भी इम्तिहान कैसे-कैसे
सिलेबस भी वो जिसका अता-पता नहीं होता
मोहब्बत होती है और होती रहेगी
नफ़रत से नस्ल का गुज़ारा नहीं होता
वादा फ़रामोश = वादा तोड़ने वाला
सियासत = राजनीति
सिलेबस = syllabus
19 अक्टूबर 2015
सिएटल | 513-341-6798
2 comments:
अच्छी कविता है। हर दो lines light-hearted way में कुछ बात कहती हैं।
"हम पुरस्कार भी लौटाएँ तो हो जाते हैं बदनाम
वे क़त्ल भी करे तो चर्चा नहीं होता"
मुझे issue के बारे में ज़्यादा नहीं पता पर अपनी बात कहने के लिए आपने original lines को अच्छा adapt किया है।
"हम होते, तुम होते तो ऐसा नहीं होता
जहाँ भी होता है झगड़ा, वहाँ हमसा नहीं होता"
यह बात सही है कि हमें हर झगड़े अपनी सोच सही लगती है और दूसरों की सोच गलत लगती है। हमें दूसरों की सोच ही झगड़े की जड़ लगती है।
"मोहब्बत होती है और होती रहेगी
नफ़रत से नस्ल का गुज़ारा नहीं होता"
बात सही है कि प्यार पनपता रहा है, generations चलती रही हैं। किंतु जैसे प्रेम नस्ल create कर सकता है वैसे ही नफ़रत पूरी नस्ल को क्षणों में destroy कर सकती है। फिर प्रेम करने के लिए इंसान जीवित ही नहीं रहेगा और generation नहीं चल पाएगी। इसलिए मोहब्बत होती रहेगी - सच है - पर फिर भी नफ़रत पर control ज़रूरी है।
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