यह घड़ी अगर मैं बनाता और होता नाम अहमद
घर बुलाते ओबामा मुझको और होते सारे गदगद
होते सारे गदगद करती प्रेस ताता-थैया
जग में होता नाम मेरा और मिलते ऑफर बड़िया
मिलते ऑफर बड़िया पर मेरा नाम रखा ऐसा छाँटकर
कि हिंदुस्तान से भी भागा डरकर, खा गया वहाँ आरक्षण
यहाँ आकर भी नाम बदला, बदला रहन-सहन भी
कब तक बाबा रामदेव की सुनता, जिम में उठाए वजन भी
धोबी के कुत्ते जैसी हालत, न रहा इधर का न उधर का
मेरा भी क्या दोष है इसमे, मैंने तो चाही मधुरता
मेल्टिंग पॉट में मेल्ट होकर मिटा डाली विविधता
बाकी जो कुछ बचे-खुचे हैं उन्हें हर कोई है पूजता
कवि महोदय, कथा-वाचक, ज्योतिष और वैद्य
नाटकवाले, गायक, मेकअप मैडम सब के सब हैं सेट
यह घड़ी अगर मैं बनाता और होता नाम अहमद
घर बुलाते ओबामा मुझको और सारे होते गदगद
23 सितम्बर 2015
सिएटल | 425-445-0827
1 comments:
घड़ी वाली घटना से अहमद सच में बहुत famous हो गए हैं। नाम से लोग किसी का धर्म या जाति जान लेते हैं और कई बार उस basis पर भेद-भाव करते हैं। इस वजह से हम सोचते हैं कि अपनी पहचान मिटा दें और भीड़ में खोकर "normal" बन जायें। मगर अपनी पहचान मिटाने से हम ख़ुशी नहीं पाते हैं। सच तो यह है कि जिस तरह garden में कई variety के फूल हैं और उन सब से ही एक सुन्दर garden बनता है, इसी तरह अपनी पहचान बनाके रखनी चाहिए और differences को appreciate करना चाहिए।
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