Friday, June 24, 2022

नीली डंडियाँ

सागर की लहरें 

उतने दिल

नहीं तोड़ती होंगी

जितने मैं तोड़ देता हूँ

चैट हटा कर


लहरें 

जब लिखा मिटाती है

तो कुछ तो तसल्ली होती है

कि नादान हैं

पढ़ीं-लिखीं नहीं हैं

नहीं जानतीं कि

वे क्या कर रहीं हैं


और यहाँ उलटा

नीली डंडियाँ 

झूठा कह देतीं हैं

कि मैंने सब पढ़ लिया 


इन्हें और उन्हें 

क्या मालूम

कि मैंने नौ से पाँच 

खुद को गिरवी पर रख दिया है

बाक़ी समय

पकाता हूँ, खिलाता हूँ

धोता हूँ, सुखाता हूँ


इन सब के बीच

न तो समय है

न उर्जा

न इच्छा

कि

किसी के दिल से निकली

मार्मिक

सशक्त

भावपूर्ण 

कविता

ग़ज़ल 

रूबाई

सवैया

कुण्डलियाँ 

मुक्तक

क्षणिकाएँ 

देखूँ

शब्दों के मायने जानूँ

और उन पर सोचूँ 


सच

कितना मुश्किल है जीवन

जब रोटी-कपड़ा-मकान मुहैया हो जाते हैं आसानी से


राहुल उपाध्याय । 10 जुलाई 2020 । सिएटल




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1 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अगर आपमें हिम्मत नहीं कि के8सी के लिखे को पढ़ सकें तो शायद औरों से भी ऐसी उम्मीद नहीं करते होंगे ।