बदलते ज़माने के बदलते ढंग हैं मेरे
नए हैं तेवर और नए ही रंग हैं मेरे
शुद्ध भाषा के शीशमहल में न रख सकोगे कैद मुझे
मैं तुम्हे आगाह कर देता हूँ कि संग संग हैं मेरे
ये तेरी-मेरी भाषा का साम्प्रदायिक तर्क तर्क दो
जैसे सुंदर हैं तुम्हारे वैसे ही सुंदर अंग हैं मेरे
कहीं संकीर्णता का जंग खोखला न कर दे साहित्य को
इसलिए हर महफ़िल में छिड़ते हैं हर रोज़ जंग मेरे
संस्कृत से है माँ का रिश्ता और उर्दू बहन है मेरी
खिलाती-पिलाती है अंग्रेज़ी और बॉस फ़िरंग हैं मेरे
माँ-बहन को एक करना चाहता है 'राहुल'
नासमझ समझेंगे कि ये नए हुड़दंग हैं मेरे
सिएटल । 425-445-0827
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संग (उर्दू) - stone; संग (हिंदी) - with
तर्क (उर्दू) - abandon; तर्क (हिंदी) - arguments
जंग (उर्दू) - war; जंग (हिंदी) - rust
Thursday, April 1, 2010
बदलते ज़माने के बदलते ढंग हैं मेरे
Posted by Rahul Upadhyaya at 8:12 AM
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Labels: TG, world of poetry
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2 comments:
बहुत सुंदर रचना। पसंद आई।
अच्छी रचना
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