उत्सव आते हैं
उत्सव जाते हैं
शुभकामनाओं के संदेश
कट-पेस्ट कर दिए जाते हैं
कब, कहॉं, किसपे क्या विपदा पड़ी
इससे किसीको कोई सरोकार नहीं
कब किसका उद्धार हुआ
किसीको कुछ पता नहीं
कब किसकी कौनसी समस्या का निवारण हुआ
इसे जानने-समझने की भी कोई ज़रूरत नहीं
पहले
पन्द्रह-बीस दिन पहले ही
संदेशे भेज दिए जाते थे
और मिल भी जाया करते थे
और अब?
मजाल है जो
दो दिन पहले भी मिल जाए
जनाब, जिस दिन पर्व होगा
उसी दिन मिलेगा
ताकि कहीं गलती से भी आप
एक दिन पहले
या एक दिन बाद
खुश न हो लें
पहले जब संदेशे भेजे जाते थे
सामनेवाला बड़ी मेहनत करता था
सोच-समझ कर कार्ड ख़रीदता था
एक अच्छी सी क़लम लेकर
अपने हाथों से आपका नाम लिखता था
रंग-बिरंगे लिफ़ाफ़ों पर
त्योहारी डाक-टिकट लगाकर
पोस्ट करता था
फिर डिजीटल युग आया
लेकिन तब भी सामनेवाला
अपने सैकड़ों कॉंटेक्ट्स में से
आपका नाम चुनकर
कम से कम
टू, सीसी या बीसीसी में
जोड़ता तो था
अब तो ये आलम है कि
शुभकामनाएँ दीवार पर चिपका दी हैं
जिसे देखना है वो देख ले
वरना हमें कौनसी गरज पड़ी है
आपको शुभकामनाएँ देने की
उत्सव आते हैं
उत्सव जाते हैं
शुभकामनाओं के संदेश
कट-पेस्ट कर दिए जाते हैं
27 अक्टूबर 2014
सिएटल । 513-341-6798
4 comments:
यंत्रायित हो गया सब -क्या करे कोई !
आपने social media के बारे में ठीक कहा है कि आज कल हम शुभकामनाएं broadcast कर देते हैं। कुछ लोग उन्हें पढ़ कर comment दे देते हैं - बस इसी से greetings पूरी हो जाती हैं।
मुझे लगता है कि बात closeness feel करने की है - अगर चाहें तो अब हम phone ही नहीं, Skype और Facetime से बातें कर सकते हैं, आज भी लोगों को personally visit कर सकते हैं, personal email या message भेज सकते हैं - और अगर न चाहें तो एक general message या mass email भेज कर greetings पूरी कर सकते हैं। Digital Age नें दूरियाँ create नहीं की हैं - उसने पहले ही दिलों से दूर रिश्तों को conveniently manage करने का साधन दे दिया है।
सोशल मीडिया तो एक अच्छा माध्यम है। इसका सदुपयोग या दुरुपयोग करना हमारे हाथ में है। आज जितने नये-पुराने लोगों के बीच इसके माध्यम से संवाद हो रहा है उसकी कल्पना भी हम नहीं कर सकते थे। अपना क्लोज ग्रुप बनाकर आत्मीयता बढ़ाना भी आसान है, और केवल अधिक से अधिक संख्या का रिकॉर्ड बनाना भी आसान है। जैसा चाहिए चुन लीजिए। :)
Sateek va saarthak prastuti!!
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