मेरे सपनों ने मुझे ये कहा है
जो चाहता है तू तुझको अता है
ये सारा जीवन जो तुझको मिला है
है ये एक सौग़ात नहीं ये सज़ा है
जो जलवे हैं जग में उन्हें तो निखारों
जो मुख़ातिब हैं तुमसे उन्हें तो पुकारों
जो पाया है नभ से उन्हें तो निहारों
दिन-रात का संग सबसे जुदा है
भड़कते हैं शोले जो तेरे बदन में
पनपते हैं धागे जो तेरे ही मन में
बनते हैं नगमें वो सुर के चमन में
तेरे राग का तू खुद ही ख़ुदा है
हसीं इस जहाँ में सब ही हसीं हैं
चाहता है तू जिसको वो दिलनशी है
देख लें खुद को तू तुझे क्या कमी है
अपने आपको ही नहीं जानता है
राहुल उपाध्याय । 19 मार्च 2021 । सिएटल
अता = दिया गया
मुख़ातिब = सामने
1 comments:
भावनाओं का सिंधु बह रहा लेकिन कुछ उलझा उलझा सा ।
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