तक़दीर का बहाना
कब तक कोई बनाए
मुश्किल है जो भी कोई
क्यों न उसे मिटाए
जीवन के सफ़र में
कठिनाईयाँ बहुत हैं
कठिनाईयों से डर के
कब तक कोई निभाए
ज़ंजीर नहीं है कोई
बंधन कदम कदम हैं
शमशीर हमारे हाथ हैं
क्यों न उन्हें चलाएँ
आसमाँ से भी आगे
आसमाँ कई-कई हैं
छू लेंगे हाथ तेरे
'गर हाथ तू बढ़ाएँ
(हसरत जयपुरी से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 4 मार्च 2021 । सिएटल
शमशीर = तलवार
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