मेरी राह खुद मैं बनाने लगा हूँ
के खुद अपना सूरज उगाने लगा हूँ
सहारों मुझे तुम सहारा न देना
मैं खुद अपनी ताक़त लगाने लगा हूँ
धड़कते हुए दिल की आवाज़ हूँ मैं
मैं खुद अपनी महफिल सजाने लगा हूँ
घड़ी दो घड़ी का ही हो चाहे जीवन
मैं नग़मे हज़ारों गाने लगा हूँ
(शैलेंद्र से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 3 मार्च 2021 । सिएटल
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