Monday, November 25, 2024

तुम न होती कविता न होती

तुम न होती कविता न होती 

कविताओं में ढलते न मोती 


तुमसे ही तो ग़ज़ल हुई है 

वरना रदीफ-काफ़ियों में खोती 


इक उम्र पड़ी है जीने को लेकिन 

तुम पर न मरता तो क़िस्मत ये रोती


जीती तो है पर अपने दम पर नहीं 

है किसी की नाती, किसी की पोती 


गांधी कई हैं आसपास तुम्हारे 

ज़रूरी नहीं है कि पहने वो धोती


राहुल उपाध्याय । 25 नवम्बर 2024 । सिएटल 



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