पढ़-लिख के रात-दिन हुए नौकरी को भेंट
हैं कहाँ वो आदमी जो कर रहे इन्वेंट
आधे से ज़्यादा आदमी हैं बंधुआ मज़दूर
कहने को वे पा रहे छुट्टियाँ भरपूर
जोड़ते-जोड़ते आएगा एक दिन ऐसा मोड़
जाते वक़्त तुम जाओगे सब यहाँ पे छोड़
सब दिन होंगे एक से, याद रखो इक बात
सुख-दुख सारे एक हैं, सोच ही देती मात
वजन न होता कम कभी, देखो धरती ओर
घूमती-फिरती रात-दिन, खाए न एक भी कौर
राहुल उपाध्याय । 28 नवम्बर 2024 । सिएटल
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