Thursday, November 28, 2024

पढ़-लिख के रात-दिन हुए नौकरी को भेंट

पढ़-लिख के रात-दिन हुए नौकरी को भेंट

हैं कहाँ वो आदमी जो कर रहे इन्वेंट 


आधे से ज़्यादा आदमी हैं बंधुआ मज़दूर 

कहने को वे पा रहे छुट्टियाँ भरपूर 


जोड़ते-जोड़ते आएगा एक दिन ऐसा मोड़ 

जाते वक़्त तुम जाओगे सब यहाँ पे छोड़ 


सब दिन होंगे एक से, याद रखो इक बात

सुख-दुख सारे एक हैं, सोच ही देती मात


वजन न होता कम कभी, देखो धरती ओर

घूमती-फिरती रात-दिन, खाए न एक भी कौर


राहुल उपाध्याय । 28 नवम्बर 2024 । सिएटल 






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