रात भर टीवी देखो
दिन पहाड़ सा नहीं लगता
हाथ में हो हाथ
दिमाग़ नहीं भटकता
दुनिया की गलियों में
नज़ारे ही नज़ारे हैं
कैमरा हो हाथ में
बुरा नहीं दिखता
जो खोज लेता है ख़ुद को
पहचान लेता है आप को
वो कौन जीता, कौन हारा
इसमें नहीं उलझता
सफ़र है ये सबका
सबका ये पड़ाव है
तू-तू मैं-मैं करने से
कुछ बदला नहीं करता
अक्सर ये आदमी
इश्क़ जब है करता
माँ-बाप या भाई-बहन
किसी की नहीं सुनता
राहुल उपाध्याय । 7 नवम्बर 2024 । सिएटल
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