जितनी लम्बी चादर हो उतने ही पांव पसार यही पाठ पढ़ाया गया जीवन में हर एक बार पाई-पाई गिन के जब-जब पाई पगार दुनिया के हैं ढंग निराले रीत इसकी बेजोड़ जब तक आदमी ज़िंदा रहे रहे पांव सिकोड़ एक दिन जब जाने लगे नाते सारे तोड़ बाजे-गाजे से विदा होए लम्बी चादर ओड़ आत्मा जब तक साथ थी लेते थे मुख मोड़ पार्थिव शरीर के सामने खड़े हैं हाथ जोड़ यही दुनिया का दस्तूर है यही इसका निचोड़ जीवन का कुछ मोल नहीं मरे मिले करोड़ सिएटल 26 दिसम्बर 2007 Listen to it straight from the horse's mouth. Glossary: पाई = 1. penny 2. received पगार = salary पार्थिव शरीर = dead body दस्तूर = custom निचोड़ = summary मिले = 1. found 2. received करोड़ = 1. million (people) 2. million (rupees)
Thursday, December 27, 2007
मरे मिले करोड़
Posted by Rahul Upadhyaya at 12:19 AM
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3 comments:
बहुत बढिया व खरी रचना है।बधाई।
आत्मा जब तक साथ थी
लेते थे मुख मोड़
पार्थिव शरीर के सामने
खड़े हैं हाथ जोड़
यहीं दुनिया का दस्तूर है
यहीं इसका निचोड़
जीवन का कुछ मोल नहीं
मरे मिले करोड़
सुन्दर रचना
अच्छा लगा पढ़कर ...बधाई
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