Wednesday, April 7, 2010

कैलेंडर और घड़ी

कैलेंडर है एक
तिथियाँ कई हैं
इनमें स्थित
परिस्थितियाँ कई हैं

कैलेंडर से छोटी
कैलेंडर से बड़ी
दुनिया में नहीं
कोई ऐसी किताब
बारह पन्नों के बीच में
जो सौंप दे सारा जहाँ

बच्चों की छुट्टी
बुआ का ब्याह
ग्वाले का दूध
धोबी की लिस्ट
पड़ोसी का डिनर
मौसी का नम्बर
सोख लेता है सब का सब
खानों में खचा-खच
ये कैलेंडर

इसमें छिपा है
हम सबका हाल
इसे पता है
पग पग की बात

राम का जन्म
रावण का दाह
पितरों का श्राद्ध
होली की आग
गाँधी का जन्म
आज़ादी की रात

अरे!
तो हम कभी गुलाम थे?
परदेसी करते हम पे राज थे?
करते उन्हें हम सलाम थे?

आँखें हमारी ये है खोलता
खून हमारा है खौलता
अपनी किस्मत को हम हैं कोसते
तारीख़ बदलने को हैं दौड़ते
तारीख़ तो बदल सकते नहीं
तारीखें बदल कर रह जाते हैं
महीनों के नाम अदल-बदल कर
संवत् नए चिपकाते हैं

लेकिन
घड़ी की टिक-टिक नहीं बदल पाते हैं
और वो वही की वही टिकी रह जाती है
जहाँ लंदन के आका उसे सेट कर जाते हैं

आज भी ग्रीनविच का दिल इसमें है धड़कता
आज भी काँटे उन्हीं के हैं घूमते
बेड़िया नज़र आती नहीं
मगर हम हथकड़ी उन्हीं की पहन कर हैं घूमते

सिएटल । 425-445-0827
7 अप्रैल 2010
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कैलेंडर = calendar; लिस्ट = list; डिनर = dinner;
नम्बर = number; तारीख़ = history, date;

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2 comments:

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

calender n ghadi ke madhyam se achchi baat bata di aapne to.....

Chhanda said...

Good one