Wednesday, January 8, 2014

बढ़ती दूरियाँ

(1)
हर मील का पत्थर
हमें एक दूसरे से काटता है
दूर करता है
"भाई साहब, शिवगढ़ कितना दूर है?"
पूछने से रोकता है

(2)
भाषा आनी चाहिए
पर इतनी भी नहीं
कि बोलचाल ही बंद हो जाए

पढ़ने-लिखने में इतने निपुण न हो जाए
कि सन्नाटा ही छा जाए

भाषा आए
तो बोलने भर की आए
ताकि
धूप में
खाट पे बैठे
अख़बार पढ़ते बुज़ुर्ग से
मैं बतिया सकूँ
कि
"बाऊजी, बताइए दुनिया में आजकल क्या चल रहा है?"

(3)
धन हो
पर इतना भी नहीं कि
अपने ही घर में थियेटर हो
और हम जन-समाज के बीच उठना-बैठना ही भूल जाए

धन हो
पर इतना भी नहीं कि
अपना ही चार्टर्ड प्लेन हो
और हमसे किसी अजनबी से रु-ब-रु होने की तमीज़ भी जाती रहे

धन हो
पर इतना भी नहीं कि
अपनी ही कार से दफ़्तर जाए
कारपूल से कतराए
और पब्लिक ट्रान्स्पोर्ट के नाम से ही पसीने छूट जाए

8 जनवरी 2014
दिल्ली । 88004-20323


इससे जुड़ीं अन्य प्रविष्ठियां भी पढ़ें


1 comments:

Anonymous said...

यह रचना दिखाती है कि तीन अलग examples - मील का पत्थर, भाषा, और धन - जो जीवन को convenient बनाने के लिए बनें हैं कैसे इंसान को इंसान से दूर भी कर देते हैं। जब मील का पत्थर distance बता देता है, map directions बता देता है तो किसी से बात करने की ज़रूरत नहीं रहती। Information पहले ही मिल जाती है तो बात करना waste of time लगता है। इसी तरह अगर हमें किसी का औदा, धर्म या last name न पता हो तो हम इंसान को सिर्फ इंसान की तरह जान सकते हैं मगर यह information पहले मिल जाने से हम कुछ notions बनाकर बात करते हैं या बात ही नहीं करते।

आपने ठीक कहा कि भाषा communication के लिए बनी है। हम written form में अपनी बात दूर तक पहुँचा सकते हैं। मगर जब सब लोग same बातें print में ही पढ़ लेंगे और एक दूसरे से बात नहीं करेंगे तो connection कैसे बनेगा? इसलिए पढ़ी हुई बात को discuss करना भी ज़रूरी है।

आपने कहा कि धन होने पर हम convenience ख़रीद लेते हैं और एक दूसरे से दूर हो जाते हैं। यह बात सही है मगर इससे related एक और बात भी है। Dan Millman का एक quote है: "Money is a form of energy that tends to make us more of who we already are whether it's greedy or loving." धन अपने आप में अच्छा या बुरा नहीं होता। वो हमें और अधिक वैसा बनाता है जैसे हम अंदर से पहले ही होते हैं। धन हमारे अच्छे-बुरे self को उभार देता है। अगर हम इंसानों से जुड़ना चाहें तो पैसा होने पर भी जुड़ सकते हैं; न चाहें तो पैसा न होने की मजबूरी समझ के जुड़ते हैं।

रचना का तीन अलग बातों को एक thread में जोड़ना अच्छा लगा!