एक था हीरो
एक थी हिरोईन
हीरो को था
हिरोईन से प्यार
हिरोईन को था
हीरों से प्यार
हीरो था गबरु जवान
बजाते ही उसके सीटी बस
रुक जाती थी चलती 'सिटी बस'
हिरोईन थी गज़ब की सुन्दर
निकलती थी जब घर से बाहर
होश खो देती थी सारी 'सिटी' बस
एक था हीरो
एक थी हिरोईन
हीरो को था
हिरोईन से प्यार
हिरोईन को था
हीरों से प्यार
प्यार का मारा होता है 'फ़ूल'
रोज देता था उसे दर्जनो फूल
पढ़ना लिखना छोड़
'क्लाँस' करता था गुल
काँलेज में इस तरह
खिलाता था गुल
एक था हीरो
एक थी हिरोईन
हीरो को था
हिरोईन से प्यार
हिरोईन को था
सिर्फ़ हीरों से प्यार
उसे मंजूर नहीं था
हीरो की चार पाई की
कमाई से खरीदी
चारपाई पर चैन से सोना
उसे चाहिए थी चैन
जिस में हो दस तोला सोना
दे न सका
हीरों का हार
इस तरह हुई
इस हीरो की हार
एक था हीरो
एक थी हिरोईन
हीरो को था
हिरोईन से प्यार
हिरोईन को था
सिर्फ़ हीरों से प्यार
हीरो हुआ बड़ा निराश
और बन गया देवदास
एक दिन जो गया एक 'बार'
जाने लगा बार बार
प्रेम प्यार के किस्से
कहता भी तो किससे?
उसके मन की वेदना
समझ सका कोई वेद ना
नैन से आंसू बरस गए
और गुज़र दो बरस गए
बाप ने पूछा
तू इतना क्यूं पीता है?
मुझे तो बता
आखिर मैं तेरा पिता हूं
इश्क में लाचार हूं
इसलिए पीता हूं
धिक्कार है मुझे
कि मैं हार के भी जीता हूं
एक था हीरो
एक थी हिरोईन
हिरोईन को था
सिर्फ़ हीरों से प्यार
हीरो को हुआ
'हेरोईन' से प्यार
Wednesday, November 14, 2007
प्रेम कहानी
Posted by Rahul Upadhyaya at 11:34 AM
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2 comments:
क्या हीरो हिरोइन हैं.
साहब जबरदस्त है. हिट हो गए है.
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