हम दोनों के बीच प्यार था प्यार बेशुमार था बेशुमार इतना जितना दो 'बीच' के बीच लहलहाता समंदर मैं था उस किनारे तुम थी इस किनारे प्यार ने खींचा हमें एक दूसरे की ओर तुम थोड़ी बदली मैं थोड़ा बदला मैं चला तुम्हारी तरफ़ और तुम मेरी ओर मंज़ूर नहीं था हमें मझधार में मिलना मैं चलता रहा तुम चलती रही अब मैं हूँ इस किनारे और तुम उस किनारे हम दोनों के बीच अब भी प्यार बहुत है राहुल सिएटल 19 नवम्बर 2007
Monday, November 19, 2007
किनारे-किनारे
Posted by Rahul Upadhyaya at 10:04 PM
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Labels: nature, relationship, TG
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1 comments:
बहुत भावभीनी रचना जो दिल में पहचान बनाती हुई उतर गई प्यार की नई परिभाषा देते हुए...
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