नज़रों में सबकी
जादू है ऐसा
जिसको जो चाहे
दिखता है वैसा
लड़ते-झगड़ते हैं
संत भी देखो
चीज़ ही ऐसी है
रूपया-ओ-पैसा
महलों में थी तो
बच गई मीरा
गाँव में होती
अंत होता वो कैसा
अहिल्या को तारे
पत्नी को त्यागे
ऐसा-वैसा
ये धर्म है कैसा
हम थे अलग
तभी तो मिले थे
अब तुमको चाहिए
अपने जैसा
राहुल उपाध्याय । 10 सितम्बर 2023 । सिएटल
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