छोड़-छाड़ के सारे काम
जप रहा था मैं नाम घनश्याम
तभी कामदेव ने मार कर बाण
कर दिया मेरा काम तमाम
प्रकट हुई एक सुंदर सी सूरत
मानो अजंता की मनोहारी मूरत
मधुर-मधुर वो गीत सुनाए
भाव-भंगिमा से मुझे भरमाए
मटक-मटक कर इत-उत डोले
मन में भड़काए प्यार के शोले
बड़े-बूढ़ों ने एक बात कही थी
सीधी सच्ची बात कही थी
कि चाहे जितने तुम अंडे ले लो
पर मुर्गी का कभी न पेट खोलो
कि जो कुआँ तुम्हारी प्यास बुझाए
झांक के न कभी उसके अंदर देखो
लेकिन मुझमें इतना होश कहाँ था
सोच-सोच कर मेरा हाल बुरा था
कि जो ओढ़-आढ़ कर है इतनी सुंदर
अनावृत्त हो तो लगेगी और भी सुंदर
यही सोच कर मैंने हाथ बढ़ाया
धीरे से उसका पल्लू हटाया
मेरी किस्मत भी देखो कैसी फूटी
कि ऐन मौके पर नींद थी टूटी
किरणें ओढ़े खड़ी रही शाम
मैं पड़ा रहा दिल को थाम
सिएटल,
3 अक्टूबर 2008
Friday, October 3, 2008
मुर्गी का कभी न पेट खोलो
Posted by Rahul Upadhyaya at 6:46 PM
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Labels: misc
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4 comments:
mujhe bhi aisa hi sapna aaye aur uski length kuchh jyada ho
waah...kya baat kahi.bahut sundar.
bahut achha hai.
Aap kahenge ki kya khaak achha hai, sapana jo toot gaya!
very very funny
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