Sunday, October 5, 2008

मेरे भोले-भाले दिल के टुकड़े

मेरे भोले-भाले दिल के टुकड़े
कर दिए उसने कुतर के
लिखूँ मैं कविता
ताकि आप सम्हलें

और रहे उससे बच के

शादीशुदा थी
न शर्म-हया थी
फिर भी समझ न पाया
मुझे क्या हुआ था
इक बेवफ़ा पे
हाए मुझे क्यूँ प्यार आया
कर के बेवफ़ाई
हँसे वो सितमगर
तड़पूँ मैं आहें भर भर के

भाग्य विधाता
क्यूँ है सताता
मन मेरा पूछता हाए
जितना मैं जोड़ूँ
उतना ही टूटे
मन मेरा डूबता जाए
मेरी दुर्दशा की
वजह वो बताए
कर्म हैं पिछले जनम के

मीठा-मीठा बोले
इत-उत डौले
पल पल मुझको लुभाए
मैं सीधा-सादा
फ़ंस गया बेचारा
जाल ही ऐसे फ़ैलाए
सुन न सकोगे
करतूतें सारी
कहने लगूँ जो उन्हें गिन-गिन के

सिएटल,
5 अक्टूबर 2008
(मजरुह से क्षमायाचना सहित)

इससे जुड़ीं अन्य प्रविष्ठियां भी पढ़ें


2 comments:

वीनस केसरी said...

आपका हाल जान कर बड़ा दुःख हुआ :) :)

वीनस केसरी

Kamal said...

Good one..