Thursday, April 6, 2017

जब तक हूँ तब तक हूँ

जब तक हूँ

तब तक हूँ

इसके बाद

नभ तक हूँ


सम्बन्धों की सीमाएँ हैं

अनुबंधों की रेखाएँ हैं

इसके बाद

सब तक हूँ


टुकड़ों-टुकड़ों बँटता हूँ

कभी यहाँ, कभी वहाँ रहता हूँ

इसके बाद

पग-पग हूँ


नहीं हूँ तो सचमुच हूँ

हूँ तो झूठमुठ हूँ

समय से परे

पल-पल हूँ


फ़रीदाबाद और दिल्ली के बीच

7 अप्रैल 2017


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