जब तक हूँ
तब तक हूँ
इसके बाद
नभ तक हूँ
सम्बन्धों की सीमाएँ हैं
अनुबंधों की रेखाएँ हैं
इसके बाद
सब तक हूँ
टुकड़ों-टुकड़ों बँटता हूँ
कभी यहाँ, कभी वहाँ रहता हूँ
इसके बाद
पग-पग हूँ
नहीं हूँ तो सचमुच हूँ
हूँ तो झूठमुठ हूँ
समय से परे
पल-पल हूँ
फ़रीदाबाद और दिल्ली के बीच
7 अप्रैल 2017
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