Tuesday, March 20, 2018

तुम थे तो

तुम थे तो
ज़माना रोशन था
तुम्हारे गीतों का
रिमझिम सावन था

तुम्हारे कवित्त के
गुणों से हम अवगत थे
तुम्हारे गुण गाते 
हम नहीं थकते थे

लेकिन
ऐसा था

लेकिन ऐसा था
फ़क़त हम आज
यह सब कहते हैं
जब तुम सदा के लिए
कूच कर चुके हो
और
फिर आज के बाद कुछ
कहेंगे भी नहीं

क्या कभी हम कोई
कविता दोहराएँगे 
जिसका रचनाकार
साल दो साल नहीं 
दस साल जीएगा?
या हम फिर खेमों में बँट जाएँगे?
इधर-उधर की गप्पें लगाएँगे?
और साल में तीन-चार बार
कभी निराला
कभी दिनकर 
कभी महादेवी
तो कभी जावेद-गुलज़ार को ही उद्धृत कर पाएँगे?
क्या कभी हम इनसे भी आगे बढ़ पाएँगे?
इनसे उबर पाएँगे?

तुम थे तो ...

(हर किसी बड़े कवि के गुज़रने पर)
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उद्धृत = quote 

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