Friday, March 30, 2018

बाईक, मोबाईल और कामवाली बाई

बाईक, मोबाईल और कामवाली बाई
कब कहेंगे हम इनको बाई-बाई

तीनों के मुँह हैं सुरसा सी खाई
जम के जिन्होंने पाई-पाई खाई
फिर भी कभी पूर्ति पाई

कड़ी मेहनत की गाढ़ी कमाई
जब देखो लगी कम ही आई

एक बात हमें समझ आई
बाल बढ़े तो हम ढूँढे नाई
करे उनकी कटाई-छँटाई
और बढ़े तो दुखी हुई जाईं

मानव जात ही ऐसी जात है भाई
जिसे सर्दी-गर्मी कछु नहीं भाई
हो तो दुखी, हो तो दुखी
चिता तक चिंता से मुक्ति पाई

31 मार्च 2018

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