Sunday, April 15, 2018

जान जाने के बाद जान लेते हैं

जान जाने के बाद
जान लेते हैं
मृतक को किस मर्ज़ ने मारा
पहचान लेते हैं

हम शिखर पर हैं
और शिखर पर अकेले हैं
इसीलिए इन्सान 
इन्सान की जान लेते हैं

इन्सान इन्सान को जान ले
तो बेड़ा पार हो जाए
यही बात कहने को लोग
गंगातट पे तम्बू तान लेते हैं

जवान मरते हैं
अधेड़ ऑफ़िसर बनते हैं
लेकिन वेतन कहाँ सब
समान लेते हैं

यह घर होगा
या होगी यहाँ महाभारत
यह कोई नहीं बता सकता
जब मकान लेते हैं

15 अप्रैल 2018
सिएटल

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3 comments:

kuldeep thakur said...

जय मां हाटेशवरी...
अनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 17/04/2018 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

Sudha Devrani said...

बहुत सुन्दर...

दिगम्बर नासवा said...

क्या बात ...
व्यंग की तीखी धार है छंदों में ... लाजवाब रचना ...