जान जाने के बाद
जान लेते हैं
मृतक को किस मर्ज़ ने मारा
पहचान लेते हैं
हम शिखर पर हैं
और शिखर पर अकेले हैं
इसीलिए इन्सान
इन्सान की जान लेते हैं
इन्सान इन्सान को जान ले
तो बेड़ा पार हो जाए
यही बात कहने को लोग
गंगातट पे तम्बू तान लेते हैं
जवान मरते हैं
अधेड़ ऑफ़िसर बनते हैं
लेकिन वेतन कहाँ सब
समान लेते हैं
यह घर होगा
या होगी यहाँ महाभारत
यह कोई नहीं बता सकता
जब मकान लेते हैं
15 अप्रैल 2018
सिएटल
3 comments:
जय मां हाटेशवरी...
अनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 17/04/2018 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
बहुत सुन्दर...
क्या बात ...
व्यंग की तीखी धार है छंदों में ... लाजवाब रचना ...
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