मैं नित नई
चलते-फिरते
यश चोपड़ा की फ़िल्मे देखता हूँ
खेतों में
खलिहानों में
पीला दुपट्टा
लहराते हुए देखता हूँ
विहंगम वादियों में
सुरीले गीत
घुलते देख़ता हूँ
बसों में
जोड़ों को
सपने पूरे करते देखता हूँ
जैसे
गणित
एक बार समझ आने पर
ज़िन्दगी भर काम आती है
दूध का
धोबी का
आटे का
तेल का
हिसाब करने में
वैसे ही
प्रेम कथाएँ
थिएटर पर ही ख़त्म नहीं होती हैं
वे साथ चलती हैं
प्लेन में
ट्रैन में
बस में
आयरलैंड में
न्यूयार्क में
रतलाम में
शिवगढ़ में
गणित
किताबों में क़ैद नहीं है
प्रेम कथाएँ
फ़िल्मों में क़ैद नहीं हैं
वे नज़र आ जाती हैं
कहीं भी
कभी भी
किसी भी समय
किसी भी कोने में
माहौल कोलाहल का हो
या शांत हो
इन्सान दो हो
या दो हज़ार हो
पीला दुपट्टा
लहराता हुआ दिख ही जाता है
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