मिट्टी बन के फूल
बिखेरती है रंग फ़िज़ाओं में
मिट्टी थी, मिट्टी में ही मिल जाएगी
लेकिन जाने से पहले
घोल जाएगी इत्र हवाओं में
मिट्टी
न पैदा होती है
न मरती है
हमेशा अमर रहती है
लेकिन
जब तक रहती है
रहती है वो पाँव में
जब तक न बने
फूल-फल-पत्ती-काँटा
दबाई जाती है राह में
कुछ बने तो उठे
धरातल से उपर उठे
कोई बीज हो, धान हो
थोड़ा सूरज, थोड़ी हवा, थोड़ा पानी हो
तो क्यूँ न वो भी
जूही-चम्पा-चमेली-रात रानी हो
फूल खिलता है
दिल खिलता है
फूल मुरझाता है
दिल मुरझाता है
मिट्टी भले ही शाश्वत हो
दिल तो बाग़ ही बहलाता है
9 अप्रैल 2018
सिएटल
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