Thursday, April 19, 2018

संन्यास

हारना तुम्हें आता नहीं 
हराना मैं चाहता नहीं 

ऐसी बाज़ी खेलने से क्या मतलब?

अब हम बच्चे तो हैं नहीं 
कि स्कूल की यूनिफ़ॉर्म के साथ ही
गिले-शिकवे भी उतार दें

अब हम जवाँ भी नहीं 
कि व्हाट्सैप पर एक-दो कार्टून भेजकर 
सब भुला दें

पचपन की उम्र में तो पवैलियन नज़र जाता है
राम चाहे भजूँ भजूँ पर जीवन सिमट सा जाता है

क्यूँ पहनूँ पैड्स
क्यूँ चढ़ाऊँ ग्लव्स
और क्यूँ किसी अनजान गैंद पर
हो जाऊँ मैं आउट?

तुम्हें 
अपनी टीम
अपना मिशन 
मुबारक 

मुझे अपना रणभूमि से संन्यास

19 अप्रैल 2018
सिएटल

इससे जुड़ीं अन्य प्रविष्ठियां भी पढ़ें


3 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना आज के "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 15 एप्रिल 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

yashoda Agrawal said...

भूल सुधार.. "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 22 एप्रिल 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Meena Bhardwaj said...

बहुत सुन्दर रचना .